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________________ प्रकाशकीय मूलाचार दिगम्बर परम्परा में मुनि आचार का प्रधान ग्रन्थ माना जाता है। डा० फूलचन्द जैन प्रेमी ने इसका समीक्षात्मक अध्ययन कर शोध प्रबन्ध लिखा था। उनकी यह कृति पाठकों को समर्पित करते हुए आज हमें अतीव प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है । डा० फूलचन्द जैन प्रेमी संस्थान के शोधछात्र रहे हैं । उन्होंने संस्थान में रहकर इस शोध प्रबन्ध को तैयार किया था और जिस पर उन्हें १९७७ में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा पी-एच० डी० की उपाधि प्रदान की गई थी। उनका अप्रकाशित रूप में ही यह शोध प्रबन्ध दिगम्बर जैन समाज के द्वारा पुरस्कृत भी हुआ। पुनः संस्थान के निदेशक डा० सागरमल जैन की प्रेरणा से उन्होंने अपने इस शोध प्रबन्ध को पुनः चार वर्ष तक कठिन परिश्रम करके पर्याप्त रूप से परिवर्तित, परिवर्धित व परिष्कृत किया है। उससे यह ग्रन्थ एक नये रूप में हमारे सामने आ रहा है। अनेक प्रसंगों में उहोंने श्वेताम्बर व अन्य भारतीय धर्म-परम्पराओं का तुलनात्मक अध्ययन भी इसमें जोड़ दिया है जिसके कारण तुलनात्मक और समन्वयात्मक अध्ययन की दृष्टि से भी यह ग्रन्थ अत्यधिक महत्वपूर्ण बन गया है । लेखन के साथ ही साथ उन्होंने ग्रन्थ के प्रूफ संशोधन का दायित्व भी स्वयं ही निर्वाह किया है। उनका संस्थान के प्रति यह सह्योग निश्चित ही सराहनीय है। हम उनके प्रति आभार प्रकट करते हैं। संस्थान द्वारा इस ग्रन्थ का प्रकाशन उनके असाम्प्रदायिक दृष्टिकोण का भी परिचायक है तथा इससे यह भी ज्ञात होता है कि संस्थान का उद्देश्य साम्प्रदायिक संकीर्णता से ऊपर उठकर शुद्ध अकादमीय दृष्टि एवं बौद्धिक ईमानदारी से कार्य करने का है । संस्थान के निदेशक डा० सागरमल जैन ने इस ग्रन्थ में विद्वत्तापूर्ण भूमिका लिखी अतः उसके लिए हम उनके भी आभारी हैं। __ इस ग्रन्थ के प्रकाशन के लिए हमें आदरणीय श्री सरदारमलजी कांकरिया, कलकत्ता के द्वारा उनके अग्रज श्रीपारसमलजी कांकरिया की पुण्यस्मृति में सात हजार रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ है, संस्था उनके इस सहयोग के लिए उनके प्रति अत्यन्त आभारी है और यह अपेक्षा करती है कि कांकरिया परिवार का संस्थान के प्रति इसी प्रकार का स्नेह बना रहेगा। ___ अन्त में ग्रन्थ के मुद्रण हेतु हम वर्द्धमान मुद्रणालय और उसके व्यवस्थापक श्री राजकुमार जैन के प्रति आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने परिश्रम उठाकर समय पर इस ग्रन्थ के मुद्रण का कार्य सम्पन्न किया। भूपेन्द्रनाथ जैन मन्त्री, सोहनलाल जैन विद्या प्रसारक समिति, अमृतसर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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