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सुधी पाठकों से यह अनुरोध है कि वे मुझे त्रुटियाँ सूचित करने की अवश्य कृपा करें ताकि आगे उनका परिमार्जन किया जा सके । ___अन्त में जिन्होंने जाने-अनजाने स्नेह, सहयोग और प्रोत्साहन दिया उन सभी के प्रति अपने कृतज्ञता के भावों को व्यक्त करने के लिए सुप्रसिद्ध विद्वान् आइन्स्टीन की वसीयतनामा का निम्नलिखित अंश उद्धृत करके विराम लेना उचित समझता हूं
"स्वयं अपने को लेकर मैं तो प्रतिदिन यही अनुभव करता हूँ कि मेरे भीतरी और बाहरी जीवन के निर्माण में कितने अगणित व्यक्तियों के श्रम का हाथ रहा है और इस अनुभूति से उद्दीप्त मेरा अन्तःकरण कितना छटपटाता है कि मैं कम से कम इतना तो इस दुनियाँ को दे सकूँ, जितना कि मैंने उससे अभी तक लिया है।"
आष्टाह्निक पर्व वीर निर्वाण संवत् २५१४ दि. २९-७-१९८८
डा० फूलचन्द्र जैन प्रेमी निवास-पी ३/२ लेन नं. १३, रवीन्द्रपुरी
वाराणसी-२२१००५
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