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________________ ( १४ ) आदरणीय प्रो० खुशालचन्द्र गोरावाला, डॉ० दरबारी लाल जी कोठिया, प्रो. बदरीनाथ शुक्ल, प्रो. रामचन्द्र पाण्डेय, स्व० डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री, डॉ० पन्नालाल साहित्याचार्य, स्व. पं० हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, स्व० डॉ. गुलाबचन्द्र चौधरी, पं० सुमेरचन्द्र दिवाकर, स्व. पं. अगरचन्द्र नाहटा, डॉ. लालबहादुर शास्त्री, स्व. पं. बाबूलाल जमादार, विद्वद्रत्न पं. हीरालाल कौशल, प्रो. उदयचन्द जैन, प्रो. एम. एस. ढाकी,:प्रो. कमल चन्द सोगानी, प्रो. दयानन्द भार्गव, प्रो. राजाराम जैन, डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री, डॉ. गोकुलचन्प्र जैन, प्रो. रामशंकर त्रिपाठी, प्रो. लक्ष्मीनारायण तिवारी श्री जमनालाल जैन, डॉ. कोमलचंद्र जैन, डॉ. भागचंद्र भास्कर, डॉ. प्रेम सुमन जैन, डॉ० सत्यप्रकाश जैन एवं स्व० श्री नाथूलाल जी जिज्ञासु आदि तथा पार्श्वनाथ विद्याश्रम के सुयोग्य मंत्री श्री भूपेन्द्रनाथ जी जैन से प्राप्त स्नेह और प्रेरणाओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। सम्मान्य डॉ. लालचंद्र जैन, वैशाली, डॉ. रमेशचंद्र जैन बिजनौर, डॉ. हुकमचंद्र पार्श्वनाथ संगवे, सोलापुर, डॉ. हरिहर सिंह, डॉ. अजित शुकदेव शर्मा (शान्ति निकेतन), डॉ. वशिष्ठ नारयण सिन्हा (काशी विद्यापीठ), श्री मांगीलाल जी सरोज सुजानगढ़, सुश्री बहिन वीणा जैन लाडन, डॉ. सुरेशचंद्र जैन, डॉ. बालशास्त्री, डॉ. कमलेश कुमार जैन, डॉ. श्रेयांस कुमार जैन, डॉ. कपूरचंद्र जैन, डॉ. अशोक कुमार जैन तथा मेरे विद्यार्थी श्री मुन्नालाल जैन, पार्श्वनाथ विद्याश्रम परिवार के डॉ. शिवप्रसाद जी, डॉ. अरुण प्रताप सिंह, श्री अशोक कुमार सिंह, श्री महेश कुमार, श्री मोहनलाल जी आदि सभी की आत्मीयता एवं सौजन्य के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। मेरी धर्मपत्नी श्रीमती मुन्नी (पुष्पा) जैन, एम. ए., प्राकृताचार्य ने पांडुलिपि करने एवं प्रूफ संसोधन में तथा पुत्र अनेकान्त कुमार और अरहंत कुमार एवं पुत्री इन्दु जैन द्वारा विविध प्रकार से जो सहयोग मिला उसे भुलाया नहीं जा सकता । मैं इनके अभ्युदय की कामना करता हूँ। यह ग्रन्थ मैंने अपने पूज्य माता-पिता को समर्पित किया है । मेरे मन में यही दृढ़ भाव है कि यह महत्-अनुष्ठान उन्हीं के शुभाशीष और प्रेरणा से सम्पन्न हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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