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जन एवं बौद्ध धर्म में भिक्षुणो-संघ की स्थापनम : २१ भिक्षुणी-संघ में जब भिक्षुणियों की संख्या में वृद्धि होने लगी तभी प्रश्न पूछने की परम्परा शुरू की गई तथा उसी समय प्रव्रज्या तथा उपसम्पदा में भी भेद कर दिया गया। क्योंकि भिक्षुणी-संघ की स्थापना के समय महाप्रजापति गौतमी तथा उसके साथ की नारियों को बिना प्रश्न पूछे ही संघ में सम्मिलित कर लिया गया था। प्रश्नों के मुख्य विषय शरीर सम्बन्धी होते थे। इन प्रश्नों को अन्तरायिक धर्म कहा गया है जो निम्न है :
१. वह अनिमित्ता अर्थात् स्त्री-चिह्न से रहित तो नहीं है ? २. वह निमित्तमत्ता अर्थात् निमित्त मात्र स्त्री-चिह्न तो नहीं है ? ३. वह अलोहिता अर्थात् मासिक-धर्म से रहित तो नहीं है ? ४. वह ध्रुवलोहिता तथा ध्रुवचोला अर्थात् मासिक-धर्म से पीड़ित तो
नहीं है ? ५. वह पग्घरन्ती (मासिक-धर्म सम्बन्धी रोग) से पीड़ित तो
नहीं है ? ६. वह शिखरिणी तो नहीं है ? ७. वह इत्थिपण्डक (स्त्री-नपुंसक) तो नहीं है ? ८. वह वेपुरिसिका (पुरुषोचित-व्यवहार) वाली तो नहीं है ? ९, वह उभतोव्यञ्जना अर्थात् स्त्री-पुरुष दोनों के लक्षणों से युक्त तो
नहीं है? १०. उसे कुठं (कोढ़) का रोग तो नहीं है ? ११. उसे गण्ड (फोड़ा) का रोग तो नहीं है ? १२. उसे किलास (एक प्रकार का चर्मरोग) तो नहीं है ? १३. उसे सोस (शोथ) का रोग तो नहीं है ? १४. उसे अपमार (मृगी) का रोग तो नहीं है ? १५. क्या वह मनुष्य (मनुस्स) है ? १६. क्या वह स्त्री (इत्थि) है ? १७. क्या वह स्वतन्त्र है ? १८. क्या वह ऋणी है ? १९. वह राजभटी अर्थात् राजा की सेवा में लगी सैनिक-स्त्री तो
नहीं है ? २०. क्या उसे माता-पिता या पति ने भिक्षुणी बनने की अनुमति दे
दी है ?
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