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________________ - २०८ : जेन और बोद्ध भिक्षुणी - संघ सम्मित्तिय निकाय का उल्लेख करता है । अभिलेखों में यहाँ सर्वास्तिवादी आचार्यों का उल्लेख है । बौद्ध धार्मिक स्थलों में कपिलवस्तु का अपना एक अलग महत्त्व था । यह बुद्ध की जन्मस्थली थी । बौद्ध धर्म में भिक्षुणी संघ की स्थापना का सर्वप्रथम प्रयास गौतमी महाप्रजापति ने यहीं पर किया था । परन्तु बुद्ध ने उसकी प्रथम प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया था । जिस न्यग्रोध वृक्ष के नीचे पूर्व की ओर मुंह करके बैठे हुये बुद्ध के समक्ष संघाटी लिये हुये गौतमी उपस्थित हुई थी — उसी स्थल पर इस घटना की स्मृति के लिए एक स्तम्भ (टावर) बना हुआ था, जिसको चतुर्थ शताब्दी ईस्वी में फाहियान ने देखा था । बौद्ध भिक्षुणियों के लिए वैशाली भी एक महत्त्वपूर्ण स्थल था । वैशाली में ही स्थविर आनन्द के प्रयास के फलस्वरूप बुद्ध ने भिक्षुणीसंघ की स्थापना की स्वीकृति प्रदान की थी । बौद्ध भिक्षुणी आम्रपाली ने बुद्ध को यहीं पर दान दिया था। वहीं पर निर्मित एक स्तम्भ का उल्लेख फाहियान तथा ह्वेनसांग दोनों ने किया है । ३ .११५ मथुरा भी बौद्ध भिक्षुणियों का एक प्रमुख स्थल था । अभिलेखों से पता चलता है कि यह जैन धर्म का भी प्रमुख केन्द्र था । यही कारण है कि यहाँ दोनों धर्म एक दूसरे से प्रभावित लगते हैं । उदाहरणस्वरूपमथुरा से प्राप्त दो जैन अभिलेखों में भिक्षुणियों को "अन्तेवासिनी' कहा गया है तथा देवरिया से प्राप्त एक बौद्ध अभिलेख में एक बौद्ध भिक्षुणी को " शिशिनी" कहा गया है, जबकि सामान्य रूप से जैन भिक्षुणियों को " शिशिनी" कहने की प्रवृत्ति थी । यहाँ आनन्द की स्मृति में एक स्तम्भ बना हुआ था, जहाँ भिक्षुणियाँ उन्हें सम्मान प्रदर्शित करती थीं । क्योंकि वह आनन्द ही थे जिनके प्रयास से भिक्षुणियाँ बौद्ध संघ में दीक्षित हुयी थीं । 1. List of Brahmi Inscriptions, 918, 919. 2. Buddhist Records of the Western World, Vol. I, P. 29. 3. Ibid, Vol, 1, P. 32. 4. Ibid, Vol, III P. 309. 5. List of Brahmi Inscriptions, 67, 99. - 6. Ibid, 910. 7. Buddhist Records of the Western World, Vol, I, P. 22, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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