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भिक्षु भिक्षुणी सम्बन्ध एवं संघ में भिक्षुणी की स्थिति : १८३
इस प्रकार के उपाश्रयों में रहने से उनके ब्रह्मचर्य की विराधना भी संभव थी । भिक्षुणी के गुप्तांग, कुच, उदर आदि को देखकर भिक्षु की कामवासना जागृत हो सकती थी । "
भिक्षु भिक्षुणियों को भिक्षा के लिए भी साथ-साथ जाने का निषेध था । भिक्षुणियाँ भी दो या तीन की संख्या में ही जा सकती थीं, अकली भिक्षुणी का जाना निषिद्ध था । भिक्षा के लिए जाते हुये यदि भिक्षु भिक्षुणी संयोगवश आमने-सामने मिल जायें तो उन्हें निर्देश दिया गया था कि वे आपस में न तो वन्दना करें और न नमस्कार करें। उन्हें परस्पर बोलने तथा देखने का भी निषेध किया गया था । भोजन के समय साधुओं की मण्डली में कोई भी भिक्षुणी नहीं जा सकती थी । भयंकर अकाल पड़ने के पर भी बिना विचारे साध्वियों द्वारा लाया हुआ आहार- पानी साधु लिए निषिद्ध था । संघ में भिक्षु भिक्षुणियों को आपस में पात्र आदि उपकरणों के प्रयोग की भी मनाही थी । इसी प्रकार साध्वियों द्वारा दी गयी शारीरिक बल को बढ़ाने तथा बुद्धि को पुष्ट करने वाली औषधि का प्रयोग भिक्षु के लिए अग्रहणीय था । "
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एकान्त में साधु-साध्वियों को आपस में बातचीत करने का सर्वथा निषेध किया गया था । नियम का उल्लंघन करने पर कठोर दण्ड की व्यवस्था थी । दृढ़ मन वाली तथा जनता में आदर प्राप्त भिक्षुणी को भी साधु द्वारा एकांत में पढ़ाना अनाचार माना गया था । वृद्ध भिक्षु ( स्थविर ) भी अकेली साध्वी से व्यर्थ का वार्तालाप नहीं कर सकता था । इसी प्रकार रात्रि के समय मुख्य भिक्षुणी भी वृद्ध अथवा तरुण भिक्षु से वार्ता - लाप नहीं कर सकतो थी ।' सहोदर भ्राता से भी जो कि अब भिक्षु बन १. तासि कक्खंतर- गुज्झ देस - कुच उदर- ऊरुमादीए,
निग्ग हियइंदियस्स वि, दट्ठ मोहो समुज्जलत्ति
- बृहत्कल्पभाष्य, भाग तृतीय, २२५७. २. " न य वंदणं न नमणं, न य संभासो न विय दिट्ठी".
३. गच्छाचार, ९६.
४. वही, ६१.
५. वही, ९१-९२.
९४.
६. वही, ७. वही, ६२. ८. वही, ११६.
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- . वही भाग तृतीय, २२४६.
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