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संगठनात्मक व्यवस्था एवं दण्ड प्रक्रिया : १७५
(च) जो राजकीय उत्सवों के समय, राज्याभिषेक के समय वहाँ बचे हुये आहार को ग्रहण करे, तो चातुर्मासिक अनुद्धातिक प्रायश्चित्त' ।
(छ) जो भिक्षुणी राजाओं के यहाँ से भोजन की याचना करे या उनके अन्तःपुर के नौकरों, दासों का भोजन माँगे या राजाओं के घोड़े, हाथी आदि जानवरों का भोजन माँगे, तो चातुर्मासिक अनुद्धातिक प्रायश्चित्त ।
(ज) जो भिक्षुणी स्वादिष्ट भोजन ग्रहण कर खराब भोजन को फेंक दे या शय्यातर ( उपाश्रय का स्वामी) के घर का भोजन ग्रहण करे, तो मासिक उद्धातिक प्रायश्चित्त ।
(झ) जो भिक्षुणी अन्य धर्मावलम्बियों से भोजन की याचना करे, तो मासिक उद्धातिक प्रायश्चित्त* ।
(ज) आचार्य या उपाध्याय को दिये बिना जो भिक्षुणी भोजन करे, तो मासिक उद्धातिक प्रायश्चित्त" ।
बौद्ध भिक्षुणी - (क) स्वस्थ भिक्षुणी यदि घी, तेल, मधु, माँस, मछली, मक्खन तथा दूध का सेवन करे तो निस्सग्गिय पाचित्तिय । (ख) लहसुन का सेवन करने पर पाचित्तिय प्रायश्चित्त ।
(ग) कच्चे अनाज को मांगकर या भूनकर खाने पर पाचित्तिय प्रायश्चित्त' ।
(घ) गृहस्थ या परिव्राजक को अपने हाथ से भोजन देने पर पाचित्तिय प्रायश्चित्त' ।
१
(ङ) तृप्त हो जाने पर पुनः भोजन करने पर पाचित्तिय प्रायश्चित्त ।
१. निशीथ सूत्र, ८।१५-१९.
२. वही, ९ । १- ६; ९।२२-२६.
३. वही, २ ।४३ - ४५.
४. वही, ३।१ - १५.
५.
वही, ४२२-२४.
पातिमोक्ख, भिक्खुनी निस्सग्गिय पाचित्तिय, २५.
६.
७. वही, भिक्खुनी पाचित्तिय १.
८. वही, ७.
९. वही, ४६. १०. वही, ५४.
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