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१७२ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ नियम एवं संघ सम्बन्धी अपराध
जैन भिक्षुणी-(क) यात्रा आदि के समय प्रवत्तिनी की अचानक मृत्यु हो जाने पर उसके द्वारा प्रस्तावित किसी भिक्षुणी को प्रवत्तिनी पद पर बैठा दिया जाता था, परन्तु यदि वह अयोग्य होती थी तो उसे हटा देने का विधान था। ऐसी भिक्षुणी संघ के कहने पर यदि न हटे, तो जितने दिन वह पद पर रहे, उतने दिन का छेद प्रायश्चित्त' ।
(ख) यात्रा आदि के समय भिक्षुणियाँ यदि बिना वत्तिनी या गणावच्छेदिनी के निश्रय में रहें, तो छेद प्रायश्चित्त ।
(ग) जो भिक्षुणी उद्घातिक प्रायश्चित्त को अनुद्धातिक प्रायश्चित्त तथा अन द्धातिक प्रायश्चित्त को उद्घातिक प्रायश्चित्त कहे,तो चातुर्मासिक अनुद्धातिक प्रायश्चित्त ।
(घ) अयोग्य व्यक्ति को दीक्षा दे, तो चातुर्मासिक अनुद्धातिक प्रायश्चित्तं । ___ (ङ) कलह करके संघ से निकले साधु-साध्वी को आहार-वस्त्र, पात्र आदि देने पर चातुर्मासिक अनुद्धातिक प्रायश्चित्त । __(च) जो भिक्षुणी अन्य धर्मावलम्बियों से अपने हाथ, पाँव, नाक, आँख की सेवा कराये, तो चातुर्मासिक उद्घातिक प्रायश्चित्त । ___ बौद्ध भिक्षुणी-(क) संघ से निकाले गये भिक्षु का यदि कोई भिक्षुणी तीन बार मना करने पर भी साथ न छोड़े, तो पाराजिक प्रायश्चित्त ।
(ख) संघ से निकाली गयी भिक्षुणी को साथी (सहजीवनी) बनाने पर मानत्त प्रायश्चित्त ।
१. व्यवहार सूत्र, ५/१२-१४. २. वही, ५/११. ३. निशीथ सूत्र, १०/१५-१८. ४. वही, ११/१८९. ५. वही, १६/१६-२४. ६. वही, १५/१३-६७. ७. पातिमोक्ख, भिक्खुनी पाराजिक, ६. .८ वही, भिक्खुनी संघादिसेस, ४.
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