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१७० : जैन और बौद्ध भिक्षुणो-संघ
(ङ) परस्पर मैथुन सेवी भिक्षुणियों को तथा कामवश किसी पुरुष में अनुरक्त (दुठे पारंचिए) भिक्षुणी को पारांजिक प्रायश्चित्त' ।
बौद्ध भिक्षुणी-(क) कामासक्त होकर जो भिक्षुणी पुरुष के कमर के नीचे तथा घुटने के ऊपर के हिस्से (उब्भजानुमण्डल) को स्पर्श करे, दबाये या सहलाये, तो पाराजिक प्रायश्चित्त ।।
(ख) जो भिक्षुणी कामासक्त होकर पुरुष का हाथ पकड़े, पुरुष के संकेत की ओर जाये, तो पाराजिक प्रायश्चित्त ।
(ग) जो भिक्षुणी कामासक्त होकर मैथुन-सेवन करे, तो पाराजिक प्रायश्चित्त।
(घ) पाराजिक अपराधी भिक्षुणी को जानते हुए भी उसे न स्वयं चेतावनी दे और न संघ को सूचित करे, तो पाराजिक प्रायश्चित्त ।
(ङ) जो भिक्षुणो कामासक्त होकर किसी पुरुष से खाद्य-भोजन ग्रहण करे, तो मानत्त प्रायश्चित्त ।
(च) किसी अन्य भिक्षुणी को इस प्रकार का खाद्य-पदार्थ लेने के लिए. प्रोत्साहित करने पर भी मानत्त प्रायश्चित्त ।
(छ) जो भिक्षुणी काम सम्बन्धी किसी स्त्री की बात को पुरुष से तथा पुरुष की बात को स्त्री से कहे, तो मानत्त प्रायश्चित्ती ।
(ज) जो भिक्षुणी अपने गुप्तांगों के रोम को बनाये, तो पाचित्तिय प्रायश्चित्त ।
१. बृहत्कल्पसूत्र, ४/२. २. पातिमोक्ख, भिक्खुनी पाराजिक, ५. ३. वही, ८. ४. वही, १. ५. वही, ६. ६. वही, भिक्खुनी संघादिसेस, ५. ७. वही, ६. ८. वही, ७. ९. वही, भिक्खुनी पाचित्तिय, २.
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