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संगठनात्मक व्यवस्था एवं दण्ड-प्रक्रिया : १६१ जो भिक्षुणी स्वस्थ होते हुए भी आग तापे । जो भिक्षुणी आधेमास (ओरेनद्धमासं) से पहले नहाये। जो भिक्षणी नया चीवर पाने पर उसको बदरंग (दुब्बण्ण) न करे । जो भिक्षुणी दूसरी भिक्षुणी, शिक्षमाणा, श्रामणेर या श्रामणेरी को चीवर प्रदान कर स्वयं उसका प्रयोग करे। जो भिक्षुणी दूसरी भिक्षुणी के पात्र, चीवर या आसन को अन्यत्र रख दे। जो भिक्षुणी जीव-हिंसा (पाणं जीविता वोरोपेय्य) करे। जो भिक्षुणी जीव-युक्त जल को पिये । जो भिक्षुणी धर्मानुसार निर्णय हो जाने पर भी समस्या को पुनः उठाये। जो भिक्षुणी जानती हुई भी चोरों के साथ जाये। जो भिक्षुणी बुद्ध के उपदेशों में दोष बताये। जो भिक्षुणी मिथ्या धारणा वाली भिक्षुणी के साथ रहे या उसके साथ भोजन करे । जो भिक्षुणी मिथ्या धारणा वाली श्रामणेरी के साथ रहे या उसके साथ भोजन करे। जो भिक्षुणी धार्मिक बात कहने पर उसे अस्वीकार करे। जो भिक्षुणी पातिमोक्ख नियमों के विरुद्ध कथन करे। जो भिक्षुणी पातिमोक्ख नियमों को मन में अच्छी तरह धारण न करे। जो भिक्षुणी असन्तुष्ट हो दूसरी भिक्षुणी को पीटे। जो भिक्षुणी असन्तुष्ट हो दूसरी भिक्षुणी को धमकाये।
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