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________________ ७ ८ Jain Education International संगठनात्मक व्यवस्था एवं दण्ड प्रक्रिया : १४७ जो भिक्षुणी कामासक्त होकर (अवस्सुता ) कामुक पुरुष के जानु भाग के ऊपर के निचले भाग (अधकक्खं उब्भजानुमण्डलं ) का स्पर्श करे, घर्षण करे । उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि पाराजिक का सबसे प्रथम एवं गम्भीरतम अपराध मैथुन था । मैथुन चूंकि बिना राग-भाव के नहीं हो सकता था, अतः यह ब्रह्मचर्य के मार्ग में सबसे प्रमुख अवरोध था जिसके निवारणार्थ संघ अत्यन्त सतर्क था । चोरी, मनुष्य-हत्या, दिव्यशक्ति का दावा, निष्कासित भिक्षु का अनुगमन करना तथा पाराजिक अपराधिनी भिक्षुणी को जानते हुए भी सूचित न करना - पाराजिक के अन्य अपराध थे । पाराजिक दोष वाली भिक्षुणी को जानते हुए भी जो भिक्षुणी न स्वयं टोके और न गण को ही सूचित करे । जो भिक्षुणी समग्र संघ द्वारा निकाले गये धर्म, विनय और बुद्धोपदेश में श्रद्धारहित भिक्षु का अनुगमन करें तथा भिक्षुणियों के द्वारा तीन बार मना करने पर भी न माने । जो भिक्षुणी आसक्त होकर कामुक पुरुष का हाथ पकड़े या उसके संकेत के अनुसार जाये । संघादिसेस - यह पाराजिक के बाद दूसरा सबसे गम्भीर अपराध था । प्रायश्चित्त की गुरुता के दृष्टिकोण से यह पाराजिक की ही श्रेणी में आता था । भिक्षुणियों के लिए निर्धारित संघादिसेस निम्न हैं भिक्खुनी भिक्षुणी *----- संघाविसेस संघातिशेष (थेरवादी) ( महासांघिक ) १ ४ ७÷८ विषय जो भिक्षुणी घूमन्त (उस्सयवादिका) होकर गृहस्थ, गृहस्थ- पुत्र अथवा श्रमण-परिव्राजकों के साथ घूमे । जो भिक्षुणी जानबूझकर चोरी करने वाली को, राजा, संघ, गण को सूचित किये बिना तथा अन्य मत के भिक्षुणी पद को छोड़ कर आयी हुई स्त्री को भिक्षुणी बनाये । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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