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११८ : जेन और बौद्ध भिक्षुणी संघ
था - मैथुन सेवन करना, परन्तु भिक्षुणी के लिए काम सम्बन्धी तीन पाराजिक अपराध थे' – मैथुन सेवन करना (मेथुनं धम्मं पटिसेवेय्य); कामासक्त होकर (अवस्सुतस्स) पुरुष के जाँघ के ऊपरी भाग ( उब्भजानुमण्डल) को सहलाना और कामासक्त होकर पुरुष का हाथ पकड़ना, उसके संकेत के अनुसार अनुगमन करना । इन अपराधों को करने वाली भिक्षुणी को पाराजिक दण्ड दिया जाता था ।
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इसी प्रकार यदि भिक्षुणी कामासक्त होकर कामुक पुरुष के (अवस्सुतस्स पुरिसपुग्गलस्स) हाथ से खाद्य-पदार्थ ग्रहण करती थी; या दूसरी भिक्षुणी को ऐसा करने के लिए उत्साहित करती थी, तो वह संघादिसेस की प्रथम आपत्ति की दोषी मानी जाती थी । यदि भिक्षुणी स्वछन्दविहारी होकर ( उस्सयवादिका) किसी पुरुष के साथ विचरण करती थी; या अकेले ही भ्रमण करतो थी या नदी पार करती थी या अकेले ही रात में प्रवास करती थी तो वह भी संघादिसेस की प्रथम आपत्ति की दोषी मानी जाती थी ।
काम सम्बन्धी कुछ पाचित्तिय नियम भी थे, जिनका अतिक्रमण करने पर उन्हें प्रायश्चित्त करने का विधान था । भिक्षुणी यदि गुप्तांग (संबाधे) के रोम को बनाती थी, तलघातक करती थी (कामानन्द के लिए योनि पर थपकी देना), जतुमटुक (मैथुन-साधन) प्रयोग योनि को उचित नाप (दो अंगुल के दो पोर - अंगुल पब्बपरमं ) से अधिक गहराई तक जल से धोती थी, तो उसे पाचित्तिय दण्ड का प्रायश्चित्त करना पड़ता था । भिक्षुणी यदि अकेले पुरुष के साथ अँधेरे में, सड़क पर, चौराहे पर वार्तालाप करती थी, तो उसे पाचित्तिय का दण्ड दिया जाता
करती थी, ' या अपनी
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१. द्रष्टव्य- - इसी ग्रन्थ का षष्ठ अध्याय.
२. पातिमोक्ख, भिक्खुनी संघादिसेस, ५.
६.
३. वही, ४. वही, १.
५. वही, ३.
६. वही, भिक्खुनी पाचित्तिय २.
७. " सम्फस्सं सादियन्ती अन्तमसो उप्पलपत्तेन पि मुत्तकरणे पहारं देति"
वही, ३; पाचित्तिय पालि, पृ० ३५५.
८. पाचितिय पालि, पृ० ३५६.
९. पातिमोक्ख, भिक्खुनी पाचित्तिय, ५.
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