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११६ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ
नैतिक नियमों का पालन कठोरता से किया जाता था । उन्हें सांसारिक वस्तुओं के मोह से सर्वथा विरत रहने की सलाह दी गई थी । स्वयं स्नान करना तथा गृहस्थ के बच्चों को नहलाना तथा खिलाना पूर्णत: वर्जित था । उन्हें गीत आदि गाने तथा सांसारिक वस्तुओं के प्रति दुःख प्रकट करने से निषेध किया गया था । इसी प्रकार सुन्दर दीखने के लिए अपने शरीर को सजाना तथा सुशोभित करना भी भिक्षुणियों के लिए निषिद्ध था । ' उन्हें पाँच समितियों तथा तीन गुप्तियों का सम्यक्रूपेण पालन करने का निर्देश दिया गया था तथा उन सभी परिस्थितियों से बचने को कहा गया था जिससे ब्रह्मचर्य के स्खलित होने का भय हो । २ उन्हें किसी गृहस्थ के यहाँ निष्प्रयोजन जाने का निषेध किया गया था । यदि गृहस्थ से कोई कार्य हो, तो गणिनी से पूछकर अन्य भिक्षुणियों के साथ जाने का विधान था । भिक्षु भिक्षुणियों के पारस्परिक सम्बन्धों के अति विकसित होने से उनमें राग आदि की भावना उत्पन्न हो सकती थी - अत: उनके पारस्परिक सम्बन्धों को यथासम्भव मर्यादित करने का प्रयत्न किया गया ।
जैन धर्म के दोनों सम्प्रदायों में भिक्षुणियों के शील-सुरक्षार्थ अत्यन्त सतर्कता बरती जाती थी । इस सम्बन्ध में परिस्थितियों का विश्लेषण करते हु अनेक नियमों का निर्माण किया गया था। दोनों ही सम्प्रदायों में भिक्षुणियों को अकेले रहने या अकेले यात्रा करने का निषेध था । परन्तु उनकी सुरक्षा के सम्बन्ध में जितनी चिन्ता श्वेताम्बर सम्प्रदाय में दिखाई पड़ती है, उतनी दिगम्बर सम्प्रदाय में नहीं । उदाहरणस्वरूपश्वेताम्बर भिक्षुणियों के लिए ११ वस्त्रों का विधान इसी सुरक्षा के दृष्टिकोण से किया गया था कि दुर्जन व्यक्ति एक बार शील-अपहरण का प्रयास करने पर भी सफल न हो सकें, परन्तु दिगम्बर सम्प्रदाय में भिक्षुणियों के लिए केवल एक ही वस्त्र का विधान था । बौद्ध भिक्षुणियों के शील सम्बन्धी नियम
स्त्रियों के प्रवेश से बौद्ध संघ के गई थी । बौद्धाचार्य इस समस्या से उन्होंने भी अनेक नियमों का प्रतिपादन किया था ।
१. मूलाचार, ४ / १९३. २. वही, ४१७७ - १९४. ३. वहीं, ४ / १९२...
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समक्ष एक कठिन समस्या खड़ी हो सुपरिचित थे तथा इस सम्बन्ध में
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