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सिद्धसेन दिवाकर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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एगे आया। एगे दंडे। एगा किरिया, स्थानांगसूत्र, सम्पादक- मधुकर मुनि, आगम प्रकाशन समिति व्यावर, राजस्थान, १/१/२,३,४, १९८१। सन्मतिसूत्र, २/१०-१४। जं अपुढेभावे जाणइ पासइ य केवली णियमा। तम्हा तं णाणं दंसणं च अविसेसओ सिद्धः ।। -वही २/३०, द्रष्टव्य२/३,४,५,७,८,९,१३,२५। तस्माच्छीसिद्धसेनोपज्ञनव्यमेत न कुत्राऽपि ज्ञानादर्शनस्य कालभेदः । यशोविजय - ज्ञानबिन्दुप्रकरणम्, संपा०पं० सुखलाल जी, सिंघी जैन ज्ञानपीठ, अहमदाबाद, १९४२, पृष्ठ-४७।
पुरातन-जैनवाक्य-सूची, पृष्ठ १४६ । २७. वही, पृष्ठ-१६७।
पुरातन-जैनवाक्य-सूची, पृष्ठ १५१ । Prof. A.N. Upadhye - Siddhasena's Nyāyāvatara and Other Works Introduction, Jain Sahitya Vikas Mandal, Bombey 1971, p. XV. षट्खण्डागम धवलाटीका, पु०-१, पृष्ठ-१५।। कषायपाहुहु-जयधवलाटीका, पु०-१, पृष्ठ-२६०। पण्डित रतनलाल संघवी के अनुसार २२ द्वात्रिंशिकाओं में सात जिन की स्तुति, दो वादोपनिषद् या वाद एवं शेष १३ भिन्न-भिन्न दार्शनिक पद्धतियों
से सम्बन्धित हैं। देखें - जिनरलकोश, पृष्ठ-१८३। ३१. द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, १/२०, २४, २६, २/२५, ३/३, ८. ४/१९।
द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, २/१९, २२, २५, ३१ । द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, ११/२२।।
द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, ३/८। ३५. तुलना करें-ईश्वरकृष्ण, सांख्यकारिका-३ एवं द्वात्रिंशद्वात्रिशिका१३/५ । ३६. ज्ञानदर्शनचारित्र्याग्युपाय: शिवेहेतवः ।
अन्योन्य प्रपिक्षत्वाच्छुद्धावगमशक्तयः ।। --द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, १९/१ । उत्पादु विगम ध्रौव्यद्रव्यपर्यायसंग्रहम् ।
कृत्स्न श्री वर्धमानस्य वर्धमानस्य शासनम् । 1- द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका,२०-१। ३८. न्यायावतार सूत्रं च श्रीवरस्तुतिमप्यथ। - द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, २।८।
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