SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ सिद्धसेन दिवाकर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ___ इस श्लोक से एवं प्रबन्धचिन्तामणि के अनुसार स्तुति का प्रारम्भ निम्न श्लोक से होता है - प्रशान्तं दर्शनं यस्य सर्वभूताभय प्रदम् । माङ्गल्यं च प्रशस्तं च शिवस्तेन विभाव्यते।।४४ ध्यातव्य है कि उपलब्ध द्वात्रिंशिका में स्तुति का प्रारम्भ न तो इन दोनों श्लोकों से किया गया है, न ही ये दोनों श्लोक उपलब्ध द्वात्रिंशिका में मिलते हैं। प्रभावकचरित में श्री वीरस्तुति के बाद जिन द्वात्रिंशिकाओं को अन्या:स्तुति लिखा है, वे श्रीवीर से भिन्न अन्य तीर्थंकरों की स्तुतियाँ जान पड़ती हैं, शायद यही कारण हैं कि इन स्तुतियों का समावेश स्तुतिपंचक में नहीं हो सका है। ___ उक्त दोनों प्रबन्धों के उत्तरकालीन विविधतीर्थकल्प एवं प्रबन्धकोश में स्तुति का प्रारम्भ निम्न श्लोक से हुआ है स्वयंभुवंभूतसहस्रनेत्रमनेकमेकाक्षरभावलिङ्गम । अव्यक्तं व्याहतविश्वलोक मनादिमध्यान्तमपुण्यपापम् ।।५१ यह श्लोक उपलब्ध द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका की प्रथम द्वात्रिंशिका का प्रथम श्लोक है।५२ परन्तु पूर्वरचित प्रबन्धों से इसका कोई समर्थन प्राप्त नहीं होता। दूसरी बात यह कि इन ग्रन्थों में द्वात्रिंशिद्वात्रिंशिका को एकमात्र श्रीवीर से सम्बन्धित बताया गया है और उनके विषय 'देवं स्तोतुमुपचक्रमे ५३ कहकर स्तुति ही बतलाया गया है किन्तु स्तुति के अन्त में शिवलिंग का स्फोटन होने पर महावीर की प्रतिमा की जगह पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रकट होना कुछ असङ्गत सा प्रतीत होता है। यद्यपि ऐसा उल्लेख मिलता है,५४ फिर भी स्तुति किसी की हो, एवं प्रतिमा अन्य की प्रकट हो, अयुक्तियुक्त प्रतीत होता है। इस तरह १४ द्वात्रिंशिकाएँ जो स्तुतिपरक या तद्विषयक नहीं हैं, प्रबन्धवर्णित द्वात्रिंशिकाओं में परिगणित नहीं की जा सकती। पण्डित सुखलाल जी एवं वेचरदास जी ने सम्भवत: इस तथ्य को समझकर ही सन्मति प्रकरण की प्रस्तावना में लिखा है कि ‘शुरुआत में दिवाकर के जीवनवृत्तान्त में स्तुत्यात्मक बत्तीसियों को ही स्थान देने की जरूरत मालूम हुई और इसके साथ में संस्कृत भाषा तथा पद्यसंख्या में समानता रखने वाली परन्तु स्तुत्यात्मक नहीं, ऐसी दूसरी बत्तीसियाँ इनके जीवन वृत्तान्त में स्तुत्यात्मक रूप में ही दाखिल हो गई और पीछे किसी ने इस हकीकत को देखा तथा खोजा ही नहीं कि कही जाने वाली बत्तीसी अथवा उपलब्ध इक्कीस बत्तीसियों में कितनी और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002085
Book TitleSiddhsen Diwakar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy