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सिद्धसेन दिवाकर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
आचार्यों के समय को पीछे ढकेलने और दिगम्बर आचार्यों के समय को ऊपर ले जाने के प्रयास का ही परिणाम है।
___ यदि इत्सिंग के यात्रा विवरण को प्रामाणिक मानकर यह मान भी लिया जाय कि भर्तृहरि का स्वर्गवास ई०सन् ६५० में हुआ (क्योंकि इत्सिंग ने ६९१ में जब अपनी यात्रा वृत्तान्त लिखा तब भर्तृहरि का देहावसान हुए ४० वर्ष बीत चुके थे)३४ तब भी इस तथ्य का निर्धारण नहीं होता है कि उनकी वाक्यपदीय इसी काल की रचना है। यदि हम भर्तृहरि को दीर्घजीवी मानकर उनकी आयुमर्यादा ९० वर्ष तक ही सीमित करें तो उनका जन्म सन्.५६० के लगभग हुआ होगा और हो सकता है कि उन्होंने वाक्यपदीय की रचना ई०सन् ५८० के आस-पास की हो किन्तु वाक्यपदीय का अनुसरण मल्लवादी ने किया है,न कि सिद्धसेन ने। इससे भी मल्लवादी विशेषावश्यकभाष्य के अधिक से अधिक समकालीन सिद्ध हो सकते हैं, किन्तु इससे सिद्धसेन की समय मर्यादा को पीछे नहीं लाया जा सकता। अभेदवाद के पुरस्कर्ता सिद्धसेन तो उनके पूर्ववर्ती ही हैं। पण्डित मुख्तार जी का यह मानना नितान्त भ्रांत है कि आवश्यकनियुक्ति के पूर्व क्रमवाद का प्रतिपादन ही नहीं हुआ था। आवश्यकनियुक्ति के पूर्व देवेन्द्रस्तव में क्रमवाद का प्रतिपादन हो चुका था, पुनः आवश्यकनियुक्ति छठी शताब्दी की रचना नहीं है जैसा कि मुख्तार जी मानते हैं, वह आर्यभद्र की रचना है जो दूसरी-तीसरी शताब्दी में हुए हैं एवं उनका उल्लेख कल्पसूत्र स्थविरावली में भी है। एल०डी० इन्स्टीच्यूट अहमदाबाद से प्रकाशित वाक्यपदीय (१९८४) की भूमिका में स्पष्ट रूप से यह उल्लेख किया गया है कि भर्तृहरि का नाम, कृति एवं उनके विचारों का उल्लेख तथा कारिकाओं के अवतरण मूल मध्यमकारिका के टीकाकार भव्य (ई०४५०), अभिधर्म के कर्ता विमलमित्र (ई०४५०), प्रमाणसमुच्चय के कर्ता दिङ्नाग (ई०४८०-५५०) तन्त्रवार्तिककार कुमारिल भट्ट (ई०५५०) के ग्रन्थों में मिलते हैं। चूंकि ई० सन् ४५० के ग्रन्थों में भर्तृहरि के वाक्यपदीय का उल्लेख हुआ है इसलिए वे निश्चित ही ई० सन् ४०० से ४५० या उसके पूर्व हुए हैं। इस आधार पर मल्लवादी का काल ई०सन् ५०० के आसपास माना जा सकता है। विशेषावष्यकभाष्य का काल ई० सन् ६०९ है, इससे यह सिद्ध हो जाता है कि मल्लवादी जिनभद्र के पूर्व व सिद्धसेन के बाद हुए हैं। प्रभावकचरित में मल्लवादी का काल वीर निर्वाण संवत् ८८४ माना गया है। यदि हम वीर निर्वाण, वि०सं० के ४१० वर्ष पूर्व मानें तो उनका काल वि०सं०४७४ आयेगा जो लगभग अन्य सभी अनुमानों से ठीक बैठता है।३५
मुख्तार जी ने मल्लवादी के समय को पी० एल० वैद्य के सुझाव के अनुसार वि०सं०८८४ तक ले जाने का प्रयास किया है। मात्र इसी से उन्हें संतोष नहीं
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