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७०
१२५.
१२६.
१२७.
सिद्धसेन दिवाकर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
न्याय प्रवेशवृत्तिपञ्जिका, पृष्ठ- ८२ ।
न्याय प्रवेशवृत्ति की प्रस्तावना, ए०वी० ध्रुव, पृष्ठ- XXXIII. न्यायावतार, सिद्धर्षि टीका, पृष्ठ ७१-७२ ।
अन्वयव्यतिरेकग्राहिप्रत्यक्षानुपलम्भोत्तरकालभाविनोऽव्यभिचरितत्रिकालव्यापिगोचरस्य मतिनिबंधन स्पोहसंज्ञितस्य प्रमाणन्तरस्य सम्बन्ध ग्राहियेष्टवात् । न्यायावतार १८, ए०एन० उपाध्ये द्वारा सम्पादित, पृष्ठ- ६५ ।
"
१२८. वही,
पृष्ठ-७३।
१२९. सन्मतिसूत्र - १/४-५/
१३०. राजशेखरसूरिकृत प्रबन्धकोश, श्रीतपाचार्यकृत कल्याणमन्दिरस्तोत्र टीका, श्री संघतिलककृत सम्यकत्वसप्ततिकाटीका के अनुसार 'महाकाल' या महंकाल का मन्दिर था। जबकि भद्रेश्वरकृत कथावली, प्रभावकचरित एवं विविधितीर्थकल्प में कुंडगे, (कुंडगेश्वर) महादेव का मन्दिर था ऐसा उल्लेख मिलता है।
देखें- डॉ० शार्लोट क्राउज़े, जैन साहित्य और महाकाल मन्दिर, विक्रम स्मृति ग्रन्थ, विक्रम द्विसहस्राब्दी समारोह समिति, ग्वालियर, सं० २०००१ विक्रमी, पृष्ठ- ४०२ ।
१३१. प्रभावकचरित, १४४ - १४८ ।
१३२. विक्रमस्मृतिग्रन्थ, पृष्ठ ४०३ ।
१३३. डॉ० शार्लोटे क्राउज़े- जैनसाहित्य और महाकाल मन्दिर, विक्रम स्मृतिग्रन्थ,
पृष्ठ- ४०४ ।
१३४. देखें - जिनरत्नकोश, भंडारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टीच्यूट पूना, १९४४, पृष्ठ- ८१ ।
और भी - Discriptive Catalogue of Jain Manuscripts, Vol. XIX. Part 1, p. 104-127.
१३५. सन्मतितर्क, प्रस्तावना, पृष्ठ- ३६ ।
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१३६. परं तस्मात्तादृशं चमत्कारमनालोक्य पश्चात् श्री पार्श्वनाथद्वात्रिंशिकाभमिक कल्याणमंदिर स्तवं चक्रे, प्रथमश्लोके एवं प्रासादस्थितात शिखिशिखाग्रादिव लिङगाद्धूमवर्त्तिरुद्रतिष्ठत् । प्रबन्धकोश, वृद्धवादिसिद्धसेनयो प्रबन्ध, पृष्ठ- १८ ।
१३७. मुख्तार, पुरातन जैनवाक्य सूची, पृष्ठ- १२७।
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