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सिद्धसेन दिवाकर की कृतियाँ
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हिताहितार्थसंप्राप्ति-त्यागयोर्यनिबन्धमम् । तत् प्रमाणं प्रवक्ष्यामि सिद्धसेनार्कसूत्रितम् ।।१।।
शान्त्याचार्य: न्यायावतारवार्तिकवृत्ति, संपा० पं० दलसुख मालवणिया, सिंघी जैन ग्रन्थशास्त्रपीठ, भारतीय विद्याभवन, बम्बई, वि० सं० २००५, पृष्ठ ५। आप्तमीमांसा, १०१-१०२, तुलना करें - न्यायावतार, २८ । आप्तोपज्ञमनुल्लङ्घ्यमदृष्टेष्ट विरोधकम् । - रत्नकरण्डश्रावकाचार, तुलनीय न्यायावतार, का०-९, देखें-अनेकान्त वर्ष ५, किरण १०-११, पृष्ठ ३४९-३५२। अष्टकप्रकरण, ३/९९, ४,५, तुलना करें, न्यायावतार, २, श्री जैनग्रन्थ प्रकाशक सभा ग्रन्थमाला, श्री राजनगकर, वि०सं० १९९५ षड्दर्शनसमुच्चय, श्लोक ५६, पृष्ठ-८३, तुलना करें न्यायावतार,४। सन्मतिप्रकरण, प्रस्तावना, पृष्ठ-३५। पुरातन-जैनवाक्य-सूची, पृष्ठ- १३३ । वही, पृष्ठ-१४४। समराइच्चकहा, प्रस्तावना, पृष्ठ-३। न्यायावतार, प्रस्तावना। प्रमाण समुच्चय, सम्पा० एच०आर०रंगास्वामी आयंगर, मैसूर, १९३०, कारिका-३, पृष्ठ ८। तत्र प्रत्यक्षं कल्पनापोढभ्रान्तम् । -- न्यायबिन्दु, १/४। न्यायावतार, ४। न्यायावतार, ५। न्यायावतार, पृष्ठ-२९। न्यायबिन्दु टीका, पृष्ठ-१३। न्यायावतार, ५। पुरातन-जैनवाक्य- सूची, पृष्ठ- १४२ । पुरातन-जैनवाक्य-सूची, पृष्ठ-१४२। H. Jacobi, Samarāiccakahā, Introduction, p.3. पी०एल०वैद्य, न्यायावतार की प्रस्तावना, पृष्ठ-११।
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