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(ईसा पू. ६४) में उन्होंने आचार्य पद प्राप्त किया और ६५ वर्ष १५ दिन की आयु में पौष बुदि ५, ईसा पू. १२ को वे स्वर्गवासी हुए। इस प्रकार उनके स्वर्गवास को २००० वर्ष व्यतीत हो रहे हैं। इसी अवसर पर देश भर में उनके द्विसहस्राब्दि समारोह मनाने के उपक्रम हो रहे हैं । आशा की जानी चाहिये कि ये उपक्रम हमें सम्यक् दृष्टि प्रदान करेंगे और तब सच ही कुन्दकुन्द समारोह का यह प्रायोजन हम सबके लिए मंगलमय होगा।
‘मंगलं कुन्दकुन्दार्यो' के रूप में किया गया मंगलाचरण कल्याणकारी हो इसी पवित्र भावना के साथ
प्राचार्य कुन्दकुन्ददेव को शत-शत नमन है।
कुन्दकुन्द स्तुति जासके मुखारविन्दतें प्रकास भासवृन्द, स्याद्वादजैनवैन इंदु कुन्दकुन्दसे । तासके अभ्यासतें विकाश भेदज्ञान होत, मूढ सो लखे नहीं कुबुद्धि कुन्दकुन्दसे ॥ देत है अशीस शीसनाय इंदु चंद से जहि, मोह-मार-खंड मारतंड कुन्दकुन्दसे । विशुद्धिबुद्धिवृद्धिदा प्रसिद्ध ऋद्धिसिद्धिदा, हुए, न हैं, न होहिंगे, मुनिद कुन्दकुन्दसे ॥
-कवि वृन्दावनदास १२ ]
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