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प्रकाशकीय
"जैन साहित्य में श्रीकृष्ण चरित" पुस्तक प्राकृत भारती पुष्प ७६ के रूप में प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर एवं श्री तारक गुरु जैन ग्रंथालय, उदयपुर के संयुक्त प्रकाशन में प्रकाशित करते हुए हमें आनन्दानुभूति हो रही है।
इस पुस्तक के लेखक श्रद्धेय उपाध्यायवर्य श्री पुष्कर मुनि जो महाराज के पौत्र शिष्य उपाचार्य श्री देवेन्द्र मनि जी महाराज के शिष्य हैं। श्री राजेन्द्र मनि जो एक अध्ययनशील एवं साहित्यरसिक हैं। नियमित रूप से साहित्य लेखन का भी कार्य करते रहे हैं। इनको लगभग पच्चीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रस्तुत पुस्तक उनका शोध प्रबंध है जिसे उन्होंने साहित्य महोपाध्याय के लिए प्रस्तुत किया था। हिन्दी साहित्य सम्मेलनहिन्दी विश्वविद्यालय, प्रयाग ने इन्हे इस शोध प्रबंध पर साहित्य महोपाध्याय पद प्रदान किया था ।
लेखक ने जैन साहित्य को आधार मानकर श्रीकृष्ण के संबंध में जो कुछ भी संदर्भ प्राप्त होते हैं उनका गहन परिश्रम पूर्वक संकलन कर प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। श्रीकृष्ण के साथ बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ का अनन्य संबंध होने के कारण भ० नेमिनाथ एवं उग्रसेन पुत्री राजीमती के संदर्भो का भी इसमें समावेश हो गया है।
लेखक ने प्रस्तुत पुस्तक को आठ अध्यायों में विभक्त किया है जिसमें उन्होंने प्राकृत जैन आगम साहित्य, आगमेतर प्राकृत जैन साहित्य, संस्कृत, अपभ्रंश भाषा में रचित कृष्ण साहित्य, राजस्थानी भाषा में रचित साहित्य एवं मक्तक साहित्य में संभित संदर्भो को प्रस्तुत करते हुए श्रीकृष्ण की महनीयता को सगौरव प्रतिष्ठापित एवं प्रतिपादित किया है। अन्त में प्रथम परिशिष्ट में भागवत पुराणादि के आधार पर वंश परिचय-तालिकाएँ एवं परिशिष्ट दो में राधा और राजीमती के संबंध में भी सुन्दर विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
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