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जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या
वस्तु के भाव और अभाव दोनों रूप होने का विरोध करता है । उसके अनुसार जो सत्य है वह हमेशा सत्य ही रहेगा । इसी प्रकार जो असत्य है वह हमेशा असत्य ही रहेगा, उसमें सत्यत्व-असत्यत्व दोनों रूप कदापि नहीं आ सकता है; किन्तु इस तर्कशास्त्रीय नियम का खण्डन लुकासीविज़ ने एक भविष्य कालीन कथन को लेकर किया था । उन्होंने उस कथन के आधार पर एक तृतीय सत्यता - मूल्य की कल्पना की थी। जिसकी तुलना आज के तर्कविद् जैन - सप्तभंगी से करते हैं । जिसे किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता है; क्योंकि जैन-सप्तभङ्गी में सत्य और असत्य की अवधारणा पृथक्-पृथक् नहीं है । प्रत्येक भङ्ग सत्य और असत्य दोनों हो सकता है । इसलिए यदि इसकी तुलना का प्रयास लुकासीविज़ के त्रि मूल्यात्मक तर्कशास्त्र से करते हैं तो उसके केवल तृतीय सत्यता- मूल्य संभाव्यता से ही कर सकते हैं । लुकासीविज़ के तृतीय सत्यता- मूल्य आधार पर सप्तभङ्गी के सभी भंगों को संभाव्य कहा जा सकता है । किन्तु किसी भंग को संभाव्य, किसी भंग को सत्य और किसी भंग को असत्य नहीं कहा जा सकता है । किन्तु इसके विपरीत प्रो० पाण्डेय सप्तभंगी की तुलना त्रिमूल्यात्मक तर्कशास्त्र से करने के बाद भी प्रत्येक भंग को सत्य ही कहते हैं । यद्यपि सप्तभंगी के प्रत्येक कथन सत्य है; क्योंकि वे सभी सापेक्षिक हैं । जैन- स्याद्वाद के अनुसार जो भी कथन सापेक्षिक होता है, वह सत्य हैं । इसलिए सप्तभंगी के प्रत्येक भंगों की सत्यता का कारण उसकी सापेक्षिकता है न कि संभाव्यता । वस्तुतः सप्तभंगी की तुलना संभाव्यता से करके प्रत्येक कथन को सत्य मूल्यवाला कहना ठीक नहीं है ।
दूसरा कारण यह है कि त्रि-मूल्यीय तर्क-शास्त्र से सप्तभंगी की तुलना करने पर मिश्रित कथनों का सत्यता - मूल्य चाहे जो भी हो, पर तीन मूल कथनों में से एक का सत्यता - मूल्य सत्य ( 1 ), दूसरे का असत्य (0) और तीसरे का संभाव्य सत्यता - मूल्म (1/2) अवश्य ही होना चाहिए; क्योंकि मिश्रित कथनों के सत्यता - मूल्यों को प्रथम भंगों के सत्यता- मूल्यों के आधार पर ही निर्धारित किया जाता है । परन्तु प्रो० पाण्डेय ने सप्तभंगी की तुलना त्रि मूल्यात्मक तर्कशास्त्र से करने के बाद भी उनके किसी भी भंग को असत्य और संभाव्य सत्यता - मूल्य वाला मानने को तैयार नहीं है । उन्होंने सप्तभङ्गी को त्रिमूल्यात्मक तो कहा है । परन्तु प्रत्येक भङ्ग के लिए सत्य (1) सत्यता मूल्य का ही प्रयोग किया है जो कि उचित नहीं है ।
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