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जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय को आधुनिक व्याख्या
यथार्थ य" ये सात दृष्टियाँ बनती हैं। जिनका महत्त्व किसी भी भविष्य कथन के सन्दर्भ में देखा जा सकता है । उदाहरण के लिए "मित्रा का गर्भस्थ बालक श्यामल होगा" इस कथन की सत्यता का विचार हम पहले संभाव्य सत्य, आवश्यक सत्य और फिर यथार्थ सत्य के रूप में करेंगे । तत्पश्चात् हम विकल्प के द्वारा इनका प्रयोग करेंगे और इस प्रकार संभाव्य सत्य अथवा आवश्यक सत्य का विकल्प प्राप्त करेंगे । ऐसे ही संभाव्य सत्य अथवा यथार्थ सत्य का विकल्प आवश्यक सत्य अथवा यथार्थ सत्य का विकल्प और अन्तत: संभाव्य सत्य आवश्यक सत्य अथवा यथार्थ सत्य का विकल्प प्राप्त करेंगे । इस प्रकार -
(१) यह संभाव्य सत्य है कि मित्रा का गर्भस्थ बालक श्यामल है । (२) यह आवश्यक सत्य है कि मित्रा का गर्भस्थ बालक श्यामल नहीं है ।
(३) यह यथार्थ सत्य है कि मित्रा का गर्भस्थ बालक इस समय अनिर्णीत वर्णवाला है ।
(४) यह आवश्यक सत्य है कि मित्रा का गर्भस्थ बालक या तो श्यामल है या श्यामल नहीं है ।
(५) यह आवश्यक सत्य है कि मित्रा का गर्भस्थ बालक श्यामल है या अनिर्णीत वर्णवाला है ।
(६) यह आवश्यक सत्य है कि मित्रा का गर्भस्थ बालक या तो श्यामल नहीं है या अनिर्णीत वर्णवाला है ।
(७) यह आवश्यक सत्य है कि मित्रा का गर्भस्थ बालक या तो श्यामल है या श्यामल नहीं है या तो अनिर्णीत वर्णवाला है । ""
इस प्रकार मानक तर्कशास्त्र के आधार पर स्याद्वाद की व्याख्या हो सकती है किन्तु यदि उपर्युक्त व्याख्या में स्याद्वाद हेतु मानक तर्कशास्त्र से केवल माडल (आकार) प्राप्त किया गया होता, और उस माडल की व्याख्या स्याद्वाद के अनुसार की गयो होतो तो शायद वह व्याख्या स्याद्वाद के बहुत ही निकट बैठती । परन्तु उपर्युक्त विवेचन में मानक तर्कशास्त्र से सप्तभंगी
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१. जैन तर्कशास्त्र और आधुनिक बहु-मूल्योय तर्कशास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन, पृ० २०७-२०८ ।
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