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________________ जैन एवं बौद्ध शिक्षा के उद्देश्य एवं विषय ८५ हिंसा ही हो। बुद्ध ने पाँच प्रकार की जीविकाओं को वर्जित माना है१०५ १. सत्थवणिज्जा अर्थात् शस्त्र, हथियार आदि का व्यापार करना। २. सत्तवणिज्जा अर्थात् प्राणी का व्यापार करना। ३. मंसवणिज्जा अर्थात् मांस का व्यापार करना। ४. मज्जवणिज्जा अर्थात् मद्य (शराब) आदि का व्यापार करना। ५. विसवणिज्जा अर्थात् विष का व्यापार करना। बुद्ध ने इन आजीविकाओं को भी गर्हणीय अर्थात् त्यागने योग्य बतलाया है तराजू की ठगी, बटखरे की ठगी, मान की ठगी, रिश्वत, वंचना, कृतघ्नता, सचियोग, छेदन, वध, डाका, लूटपाट आदि जीविका त्याग करने योग्य हैं।१०६ (६) सम्यक-व्यायाम- इन्द्रियों पर संयम, अशभ विचारों को रोकने और शुभ विचारों को जाग्रत रखने का प्रयत्न सम्यक्-व्यायाम है। अशुभ विचारों को रोकने के पाँच उपाय बताये गये हैं१०७१. शुभ विचार का चिन्तन करना। २. बुरे विचार के कर्म में परिवर्तित हो जाने के परिणाम को देखना और इसके कारण का विश्लेषण कर उसके परिणाम को रोकना। ३. शारीरिक चेष्टा की सहायता से मन पर नियन्त्रण करना। ४. मन में किसी अशुभ भावना का चिन्तन न करना। ५. बाहर में किसी के साथ दुर्व्यवहार न करना। (७) सम्यक्-स्मृति- शरीर, चित्त, वेदना या मानसिक अवस्था को उनके यथार्थ रूप में स्मरण रखना ही सम्यक्-स्मृति है। इन अवस्थाओं के यथार्थ रूप को भूल जाने से मिथ्या विचार मन में आते हैं, आसक्ति बढ़ती है और दुःख सहना पड़ता है। सम्यक्-समाधि के लिए सम्यक्-स्मृति की विशेष आवश्यकता पड़ती है। काय तथा वेदना का जैसा स्वरूप है, वैसा स्मरण सदा बनाये रखने में उनमें आसक्ति उत्पन्न नहीं होती है तथा चित्त अनासक्त होकर वैराग्य की ओर बढ़ता है एवं एकाग्र होने की योग्यता का सम्पादन करता है। ___(८) सम्यक्-समाधि- उपर्युक्त सात नियमों के पालन से साधक का मन शुद्ध हो जाता है और वह अपने मन को एकाग्र करके समाधिरत होता है, क्योंकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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