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५८ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन ७२. जत्थ य थेरी तरुणी थेरी तरुणी य अंतरे सुयइ।
गोयम! तं गच्छवरं वरनाण-चरित्त आहारं।। वही, १२३ ७३. 'चन्द्रवेध्यक', गाथा १२८-१३०. ७४. विणयं आयरियगुणे सीसगुणे विणयनिग्गहगुणे या
नाणगुणे चरणगुणे मरणगुणे एत्थ वोच्छामि।। वही, गाथा-३ ७५. 'मूलाचार', हिन्दी अनु० आर्यिकारत्न, ज्ञानमती जी, प्रस्तावना, पृ० १८ ७६. 'भगवती आराधना', अनु० कैलाशचन्द्र शास्त्री, प्रस्तावना, पृ०-१०. ७७. वही ७८. 'जैन आगम साहित्य - मनन और मीमांसा', पृ०-५९२ ७९. 'भगवती आराधना', अनु० कैलाशचन्द्र शास्त्री, प्रस्तावना, पृ०-११ ८०. 'भगवती आराधना', ५२८. ८१. ‘पालि साहित्य का इतिहास', पृ०-७७ ८२. वही, ८३. वही, पृ०-८३ ८४. वही, पृ०-८३. ८५. वही, पृ०-८७. ८६. 'महावंश- ५/२७८ (भदन्त आनन्द कौसल्यायन अनुवादित) ८७. पुरे अधम्मो दिप्पति, धम्मो पटिबाहियति। अविनयो दिप्पति, विनयो पटिबाहियति।
हन्द मयं आवुसो धम्मं च विनयं च संगायमा विनयपिटक, चुल्लवग्ग, उद्धृत'पालि साहित्य का इतिहास, भरत सिंह उपाध्याय, पृ०-७७.
‘पालि साहित्य का इतिहास', पृ०-३०९ ८९. वही, पृ०-३११.
'विनयपिटक', अनु० राहुल सांकृत्यायन, पृ०-१५. ९१. वही, पृ०-१०१. ९२. वही, पृ०-१०३. ९३ वही, पृ०-१०३. ९४. “पालि साहित्य का इतिहास', पृ०-३२६ 84. History of Indian Literature, Vol. ii,p. 33 ९६. सम्पनशीला, भिक्खवे, विहरथ सम्पनपातिमोक्खा; पातिमोक्खसंवरसंवुत्ता विहरथ
आचारगोचरसम्पन्ना अणुमत्तेसु वज्जेसु भयदस्साविनो। 'आङ्कखेय्यसुत्त', ६/१/४,
पृ०-४७ ९७. 'महाअस्सुर सुत्त' ३९, 'चूलअस्सुर सुत्त' ४०, ९८. कस्मा चेतं, मालुक्यपुत्तं, मया अव्याकतं? न हेतं, मालुक्यपुत्त, अत्थसंहितं न
आदिब्रह्मचरियकं न निब्बिदाय संवत्तत्ति। तस्मा तं मया अव्याकतं।
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