________________
१९० जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
को दातून तथा मुख धोने के लिए जल देना। (२) उनके बैठने के लिए आसन बिछाना। (३) यदि भोजन में खिचड़ी है तो पात्र धोकर देना तथा खाने के पश्चात् पात्र को बिना
धोकर रख देना। (४) गुरु के उठ जाने पर आसन को उठाकर रखना। (५) यदि वह स्थान जहाँ उपाध्याय ने भोजन ग्रहण किया है, मैला हो तो झाडू लगाना। (६) यदि गुरु गाँव में जाना चाहें तो वस्त्र, चीवर, कमरबन्द, संघाटी अर्थात् दोहरा
चीवर तथा पानी भरा पात्र देना। (७) यदि गुरु अनुगामी भिक्षु चाहते हैं तो तीन स्थानों को ढाँकते हुए घेरादार चीवर
पहन, कमरबन्द बाँध, चौपेती संघाटी पहन, मुट्ठी बाँध तथा धोया हुआ पात्र
लेकर उनका अनुचर बनना। (८) गुरु से न तो बहुत दूर होकर चलना न बहुत समीप होकर। (९) पात्र में मिली भिक्षा को ग्रहण करना। (१०) गुरु से बात करते समय बीच-बीच में बात नहीं करना। (११) गुरु अगर सदोष बोल रहे हों तो मना करना। (१२) लौटते समय पहले आकर आसन बिछाना, पादोदक अर्थात् पैर धोने का जल,
पाद-पीठ, पादकठली (पैर घिसने का साधन) आदि रख देना। (१३) गुरु के आने पर आगे बढ़कर उनके हाथ से पात्र, चीवर आदि लेना। (१४) पहले का वस्त्र लेकर दूसरा वस्त्र देना। (१५) यदि चीवर में पसीना लगा हो तो थोड़ी देर धूप में सुखा देना। (१६) धूप में चीवर को नहीं डालना। (१७) पुनः चीवर बटोर लेना। (१८) यदि भिक्षान है और उपाध्याय भोजन करना चाहते हों तो पानी देकर भोजन
देना। (१९) गुरु को पानी के लिए पूछना।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org