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शिक्षार्थी की योग्यता एवं दायित्व है, (१३) तेरे पास पात्र-चीवर पूर्ण हैं, तेरा नाम क्या है? तेरे उपाध्याय का नाम क्या है? इत्यादि। इन दोषों से रहित श्रमण को ही उपसम्पदा संस्कार दिया जाता था।८
उपर्युक्त क्रियाओं के पूर्ण हो जाने के बाद ही संघ यह निर्णय करता था कि नवशिष्य उपसम्पदा प्राप्त करने के योग्य है अथवा नहीं।
उपसम्पदा प्राप्त करने के पश्चात् भिक्षु को कुछ नियमों का पालन करना पड़ता था, जो निम्नलिखित हैं९९ (१) भोजन के लिए भिक्षा मांगना। (२) फटे-चीथरे कपड़ों से बनाये वस्त्र धारण करना। अपवाद रूप में अलसी के छाल
का वस्त्र, कौशेय अर्थात् रेशमी वस्त्र, कम्बल तथा भांग की छाल का वस्त्र भी
धारण करने का विधान था। (३) वृक्ष के नीचे निवास करना। (४) गोमूत्र को औषधि के रूप में प्रयुक्त करना।
इनके अतिरिक्त चार अकरणीय कर्म बतलाये गये हैं१०°(१) उपसम्पन्न भिक्षु को मैथुन से दूर रहना चाहिए। (२) चोरी समझी जानेवाली किसी भी वस्तु को चाहे वह तृण की शलाका ही क्यों
न हो, नहीं लेनी चाहिए। (३) उपसम्पदा प्राप्त भिक्षु को जानबूझ कर हिंसा नहीं करनी चाहिए, चाहे वह चींटा-माँटा
ही क्यों न हो। अभिप्राय है कि किसी भी प्रकार की जीव हिंसा नहीं करनी चाहिए। (४) अलौकिक तथा दिव्यशक्तियों को अपने में बतलाने से दूर रहना चाहिए। जो भिक्षु
अविद्यमान, असत्य, दिव्यशक्ति, ध्यान, विमोक्ष, समाधि, समापत्तिमार्ग या फल
को अपने में बतलाता है वह अश्रमण, अशाक्यपुत्रीय होता है। उपसम्पदा के लिए अयोग्य विद्यार्थी
बौद्ध परम्परा में निम्नलिखित लक्षणों से युक्त व्यक्तियों को उपसम्पदा के लिए अयोग्य समझा जाता है१०१(१) पण्डक अर्थात् हिजड़ा। (२) चोरी से काषाय वस्त्र धारण करनेवाला।
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