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________________ १८० जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन (१२) चार ब्राह्मण- चार ब्राह्मणों का उदाहरण देते हुए कहा गया है - कहीं से चार ब्राह्मणों को एक गाय दान में मिली। चारों बारी-बारी से उसे दूहते। कल इसे दूसरा दूहेगा, फिर मैं इसे चारा क्यों हूँ? ऐसा विचार कर के रोज दूध दूह लेते थे और गाय को चारा नहीं देते थे। परिणामत: गाय मर गयी। तदुपरान्त दुबारा किसी ने उन्हें गाय नहीं दी। इसी प्रकार जो शिष्य आचार्य की वन्दना-पूजा तथा सेवा-सुश्रूषा आदि नहीं करते हैं, वे श्रुतज्ञान से सर्वथा वंचित रह जाते हैं। अत: शिष्यों को अपने गुरु के प्रति श्रद्धा, भक्ति, आदर तथा विनय की भावना रखनी चाहिए। (१३) अशिवोपशामिनी भेरी– गोशीर्षचन्दन निर्मित अशिवोपशामिनी भेरी का उदाहरण दिया गया जो कृष्ण के पास थी। उस भेरी की आवाज सुनने से ही छ: महीने तक रोग नहीं होता था और पहले से रोगग्रसित व्यक्ति का रोग शान्त हो जाता था। एक बार एक परदेशी गोशीर्षचन्दन की तलाश करते हुए कृष्ण के भेरीपाल के पास पहुंचा और बहुत-सा द्रव्य देकर भेरी का एक खण्ड खरीद लिया। इसी प्रकार जब भी उसे आवश्यकता होती वह भेरीपाल को द्रव्य देकर भेरी का खण्ड ले जाता। जब कृष्ण को इस बात का पता चला तो उन्होंने भेरीपाल के कुल का नाश कर दिया। इसी प्रकार सूत्रार्थ को खण्डित करनेवाले शिष्य को भेरीपाल के समान बुद्धिहीन कहा गया है। (१४) आभीरी- आभीरी का उदाहरण देते हुए कहा गया है - कोई आभारी अपने पति तथा सहेलियों के साथ गाड़ी में घी के घड़े भरकर नगर में बेचने चली। उसका पति गाड़ी पर था और वह नीचे खड़ी अपनी पत्नी के हाथों में घड़े पकड़ा रहा था। पति ने समझा कि आभीरी ने घड़ा पकड़ लिया और आभीरी समझी कि घड़ा अभी उसके पति के हाथ में है। इसी असमञ्जस में घड़ा नीचे गिरकर फूट गया। आभीरी और उसके पति में तू-तू मैं-मैं होने लगी - तुमने ठीक से नहीं पकड़ा तो तुमने ठीक से नहीं पकड़ा। खींझकर आभीर ने अपनी पत्नी को खूब पीटा। इसी बीच बाकी बचे घी में से कुछ कुत्ते चाट गये और कुछ जमीन पी गयी। तब तक उसके सहयोगी अपना घी बेचकर लौट आये। आभीरी ने अपने घी को बेचा लेकिन कुछ लाभ न हुआ। इसी प्रकार जो शिष्य अपने गुरु के प्रति कटु वचन कहता है, तर्क-वितर्क कर कलह करता है, वह कभी भी प्रशस्त नहीं कहा जा सकता। 'आदिपुराण' में भी मिट्टी, चलनी, बकरा, बिलाव, तोता, बगुला, पाषाण, सर्प, गाय, हंस, भैंसा, फूटा घड़ा, डंस और जोक आदि की अपेक्षा से शिष्य के चौदह प्रकार बताये गये हैं।६३ इन चौदह प्रकारों को गुण-अवगुणों के आधार पर तीन भागों में विभक्त किया गया है- उत्तम, मध्यम तथा अधम। जो विद्यार्थी गाय और हंस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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