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शिक्षा-दर्शन : एक सामान्य परिचय रस्क के अनुसार- 'शिक्षा बालक को केवल भौतिक वातावरण में ही समायोजित नहीं करती अपितु हर प्रकार के परिवेश से समायोजित कराती है, शिक्षा का प्रयोजन बालक को वास्तविकता की सभी अभिव्यक्तियों से समन्वय करने योग्य बनाना है, केवल प्राकृतिक परिवेश से ही अपने अनुकूल कराना नहीं है। १७
जॉन डीवी ने शिक्षा को परिभाषित करते हुये कहा है- 'शिक्षा समाज में निहित विषय-वस्तु को विकसित तथा गम्भीर बनाने के लिये अनुभवों के पुनर्निमाण की एक अनवरत प्रक्रिया है, जिसके साथ व्यक्ति उन अनुभवों के पुनर्निमाण सम्बन्धी सभी क्रियायों पर पूर्णरूपेण नियन्त्रण प्राप्त कर लेता है या पूर्णरूप से उसका अभ्यस्त हो जाता है। १८
टी० रेमण्ट के अनुसार- 'शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मानव में बचपन से प्रौढ़ावस्था तक की अवधि निहित है या ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वह धीरे-धीरे विभिन्न प्रकार से अपने को भौतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के अनुकूल बनाता है। १९
ए०एन० ह्वाइटहेड ने शिक्षा द्वारा शैली निर्माण पर विशेष बल दिया है। शैली क्या है? इसे स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा है- 'अपने सर्वोत्तम अर्थ में शैली ही एक शिक्षित मस्तिष्क की अन्तिम प्राप्ति है। यह सर्वाधिक उपयोगी भी है। यह पूर्वदृष्ट लक्ष्य की सरल, सार्थक एवं प्रत्यक्ष प्राप्ति की प्रशंसा पर आधारित सौन्दर्यानुभूति है। कला में शैली, साहित्य में शैली, विज्ञान में शैली तथा तर्क में शैली- व्यर्थता से घृणा करती है अर्थात् अपव्यय से हमें बचाती है। शिक्षा मन की चरम नैतिकता है। शैली से आप अपने लक्ष्य को और केवल लक्ष्य को ही प्राप्त करते हैं। २०
प्रसिद्ध समाजशास्त्री दुखीम ने शिक्षा को परिभाषित करते हुए कहा है- 'शिक्षा अधिक आयु के लोगों के द्वारा ऐसे लोगों के प्रति की जानेवाली क्रिया है जो अभी सामाजिक जीवन में प्रवेश करने योग्य नहीं हैं, बल्कि शिक्षा शिशु में उन भौतिक, बौद्धिक
और नैतिक विशेषताओं का विकास करती है जो उसके लिए सम्पूर्ण समाज और पर्यावरण से अनुकूलन करने के लिए आवश्यक है।' २१
फिलिप्स महोदय ने शिक्षा को एक संस्था के रूप में स्वीकार किया है। उनका कथन है- 'शिक्षा वह संस्था है जिसका केन्द्रीय मूल्य तत्त्व-ज्ञान का संग्रह है।' २२
शिक्षा के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के उपर्युक्त विचारों से भिन्न जे०एस० मैकेजी साहब का विचार है। उनके अनुसार शिक्षा दो प्रकार की है- (१) व्यापक शिक्षा, (२) संकुचित शिक्षा।
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