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________________ शिक्षा-पद्धति १०५ यह कहा जा सकता है कि छात्र गुरुकुल में केवल शिक्षा ही नहीं पाता था, बल्कि सम्पूर्ण जीवन प्राप्त करता था। संस्कार, व्यवहार, कर्तव्य का बोध, विषयवस्तु का ज्ञान आदि जीवन का सर्वाङ्गीण अध्ययन एवं शिक्षण गुरुकुल पद्धति का आदर्श था। । शिक्षा का सम्पूर्ण विषय सम्यक्-दर्शन, सम्यक्-ज्ञान और सम्यक्-चारित्र के अन्तर्गत समाविष्ट हो जाता है। इन्हीं तीनों के सम्मिलित रूप को मोक्षप्राप्ति का मार्ग कहा गया है। वस्तु के यथार्थ स्वरूप को सम्यक-ज्ञान, वस्तु के वास्तविक स्वरूप को समझकर दृढ़ निष्ठापूर्वक हृदयङ्गम करना सम्यक्-दर्शन तथा व्यावहारिक रूप में उसे जीवन में उतारना सम्यक्-चारित्र है। 'तत्त्वार्थसूत्र'१ में इन्हें प्राप्त करने की दो विधियाँ बतलायी गयी हैं- (१) निसर्ग-विधि, (२) अधिगम-विधि। (१) निसर्ग-विधि निसर्ग का अर्थ होता है- स्वभाव। प्रज्ञावान व्यक्ति को किसी गुरु अथवा शिक्षक द्वारा शिक्षा प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रहती है। जीवन के विकास-क्रम में वह स्वत: ही ज्ञान के विभिन्न विषयों को सीखता रहता है। तत्त्वों का सम्यक्-ज्ञान वह स्वतः प्राप्त करता जाता है और सम्यक्-बोध तथा सम्यक्-ज्ञान की उपलब्धियों को जीवन में उतारकर सम्यक्-चारित्र को प्राप्त करता है। इसे ही निसर्ग-विधि कहते हैं। (२) अधिगम-विधि ___ पदार्थ का ज्ञान होना अधिगम है। पारिभाषिक रूप में दूसरों के सिखाने अथवा उपदेश से पदार्थों का जो ज्ञान होता है उसे अधिगम कहते हैं। इस विधि के माध्यम से ज्ञानी (प्रतिभावान्) तथा अल्पज्ञानी सभी प्रकार के व्यक्ति तत्त्वज्ञान करते हैं तथा यही तत्त्व ज्ञान सम्यक्-दर्शन का कारण बनता है। अत: निसर्ग-विधि में प्रज्ञावान व्यक्ति की प्रज्ञा का स्वतः स्फुरण होता है और अधिगम-विधि में शिक्षक का होना अनिवार्य है। यानी गुरु के उपदेश से जीव और जगत रूपी तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त करना अधिगम-विधि है। इसके निम्नांकित भेद हैं (क) निक्षेप-विधि, (ख) प्रमाण-विधि, (ग) नय-विधि, (घ) अनुयोगद्वार-विधि, (ङ) स्वाध्याय-विधि। (क) निक्षेप-विधि लोकव्यवहार में अथवा शास्त्र में जितने शब्द होते हैं, वे वहाँ किस अर्थ में प्रयोग किये गये हैं, इसका ज्ञान होना निक्षेप-विधि है। एक ही शब्द के विभिन्न प्रसंगों में भिन्न-भिन्न अर्थ हो सकते हैं। इन अर्थों का ज्ञान निक्षेप विधि द्वारा किया जाता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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