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जैन एवं बौद्ध शिक्षा दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
(८४) वैशेषिक- वैदिक दर्शन की एक शाखा का नाम वैशेषिक है।
(८५) अर्थविद्या- अर्थ के अर्जन एवं पालन करने की कला को जानना अर्थ विद्या है। इसे जीवन संचालन के लिए अत्यन्त ही आवश्यक माना गया है। (८६) वार्हस्पत्य – वृहस्पति द्वारा बनाये गये शास्त्र को वार्हस्पत्य कहते हैं । (८७) आम्भिर्य - साधना शक्ति से वृष्टि करवाना आम्भिर्य है। (८८) आसुर्य - असुरों की माया को जानना आसुर्य विद्या है।
(८९) मृगपक्षिरुत — पशु-पक्षियों की बोली समझने की विद्या मृगपक्षिरुत है। (९०) हेतुविद्या- तर्कशास्त्र का ही दूसरा नाम हेतुविद्या है। हेतुविद्या में विशेष जानकारी के लिए सम्भवत: निम्नलिखित ग्रन्थों के भी अध्ययन करने पड़ते थे१२२(क) वह शास्त्र जिसके अध्ययन से तीनों विश्वों पर विचार किया जा सके, (ख) सर्वलक्षणाध्ययन शास्त्र, (ग) आलम्बन अत्यध्ययन शास्त्र, (घ) हेतुद्वार शास्त्र, (ङ) इसी के सदृश अन्य शास्त्र, (च) न्यायद्वार शास्त्र, (छ) प्रज्ञप्ति हेतु संग्रहशास्त्र, (ज) एकत्रित अनुमानों पर शास्त्र ।
(९१) जलयन्त्र – जल को दूर फेंकने की यन्त्रविद्या जलयन्त्र है ।
(९२) मधूच्छिष्टकृत — इस कला के अन्तर्गत मोम और लाख जैसी वस्तुओं द्वारा बनाये जानेवाले शिल्प आदि आते हैं।
(९३) सूचीकर्म - इसके अन्तर्गत सिलाई-कढ़ाई आदि शिल्प आते हैं।
(९४) बिदलकर्म — बुर्कों बशोग् के कार्य में नक्कारी करना इस कला का विषय है।
(९५) पत्रच्छेद्य - शृङ्गार के लिए मुख पर फूल-पत्ते सजाना पत्रच्छेद्य कला है। (९६) गन्धयुक्ति — तेल आदि को सुगन्धित करने की कला को गन्धयुक्ति कहते हैं ।
अतः कहा जा सकता है कि बौद्ध युग में कलाओं का बहुत ही गहराई से अध्ययन कराया जाता था। केवल ग्रन्थों में ही नहीं बल्कि अर्थ और प्रयोगात्मक रूप में भी सिखलाया जाता था।
'मिलिन्दपन्ह ' १२३ में वर्ण-व्यवस्था के आधार पर पाठ्य विषयों को विभाजित किया गया है- ब्राह्मण चार वेद अर्थात् 'ऋग्वेद', 'यजुर्वेद', 'सामवेद', 'अथर्ववेद', इतिहास, पुराण, कोश, छन्द, उच्चारण विद्या, व्याकरण, निरक्त, ज्योतिष, छ: वेदांग,
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