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कौमुदीमित्रानन्दरूपकम्
(नेपथ्ये) अहो ! अब्रह्मण्यमब्रह्मण्यम्, अहह पापकारित्वम्! युवराजः- (साक्षेपम्) अरे ! कोऽयमस्मान् भूयो भूयस्तिरस्करोति?
(प्रविश्य वज्रवर्मणा सह) मित्रानन्द:- कुमार! कोऽयं विचारव्यामोहः?।
युवराजः- (प्रत्यभिज्ञाय) कथमयमस्मत्प्राणस्वामी मित्रानन्दः? (पुनः स्वसिंहासने समुपवेश्य) आर्य! किं तवाऽयं मकरन्दः?
मित्रानन्द:- ममाऽयं भ्राता मकरन्दः। युवराज:- अरे बर्बर! किमिदम्? बर्बर:- (सकम्पम्) नरदत्तेण एदं कवडं कालाविदे हगे। (नरदत्तेन एतत् कपटं कारितोऽहम्।) वज्रवर्मा- ममायं मकरन्दो जामाता।
(नेपथ्य में) अहो! अनुचित है, अनुचित है, आह! घोर पापकर्म है! युवराज- (क्रोधपूर्वक) यह कौन बारम्बार हमारा तिरस्कार कर रहा है?
(वज्रवर्मा के साथ प्रवेश करके) । मित्रानन्द- युवराज! यह कैसी विचारशून्यता है?
युवराज- (पहचान कर) क्या यह मेरा प्राणरक्षक मित्रानन्द है? (पुन: अपने सिंहासन पर बैठ कर) आर्य! यह मकरन्द आपका कौन है?
मित्रानन्द- यह मकरन्द मेरा भाई है। युवराज- अरे बर्बर! यह सब क्या है? बर्बर- (काँपते हुए) नरदत्त ने मुझसे यह छल करवाया। वज्रवर्मा- यह मकरन्द मेरा जामाता है।
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