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________________ स्ताम्बूलेन क्षितितलगतेनार्द्धजग्धेन यत्र । हेमाम्भोजैः श्रवणपतितैभूषितभूरिवासै नैशो मार्गः सवितुरुदये सूध्यते कामिनीनाम् ।। ७३ ।। ७३. जहाँ सूर्योदय होने पर मालाओं से विच्युत विविध पुष्पों, कुङकुम-रंजित चरणों के चिह्नों, पृथ्वी पर पड़े अर्द्ध-चर्वित ताम्बूलों और कानों से गिरे एवं प्रचुर सुगन्ध से भरे स्वर्ण-कमलों से कामिनियों ( अभिसारिकाओं) का रात्रि-मार्ग सूचित होता है। यत्र स्त्रीणां प्रणयिषु हठादाक्षिपत्सु क्षपायां सोमं साक्षाद् मनसिजपराधीनतामागतेषु। नित्योद्योतानपि मणिमयान प्राप्य दीप्रान प्रदीपान हीमूदानां भवति विफलप्रेरितश्पूर्णमुष्टिः ।। ७४ ।। ७४. जहाँ रात्रि में साक्षात् काम के वश में पड़े हुये प्रियों के द्वरा हठात् वस्त्र खींच लिये जाने पर लज्जा से मूळ स्त्रियाँ जब चन्दनादि का सुगन्धित चूर्ण फेंकती है तब यह नित्य प्रकाश करने वाले मणिमय प्रदीपों पर पहुँच कर व्यर्थ हो जाता है। यस्यां लोका विमलमनसः पूर्णकामाभिरामा रामाः कामं ललितगमनाः कामनारीसमानाः । वृक्षाः साक्षादतुलफलदाः कल्पवृक्षोपमेया नित्यज्योत्स्नाप्रतिहततमोवृत्तिरम्याः प्रदोषाः ।। ७५।। ७५. जहाँ मनुष्य पूर्णमनोरथ, सुन्दर और शुद्धचित्त है, जहाँ ललित गमन करने वाली स्त्रियाँ रति के समान है, जहाँ साक्षात् कल्प-वृक्ष के समान वृक्ष अतुल फल देते है और जहाँ रातों के अन्धकार को नित्य चाँदनी दूर करती रहती है। यस्यामन्तः सुकृतरसिकाः पात्रदानप्रवीणा एनोहीना विततविलसत्कीर्तयः सन्ति सन्तः। वारस्त्रीभिः सह सुमुदिताः काममग्नाश्च कामं बद्ध्वा यानं बहिरूपवनं कामिनो निर्विशन्ति ।। ७६ ।। ७६. जहाँ सुपात्र को दान देने में पटु पुण्यवान् रसिक है, जहाँ सतत कीर्तिशाली निष्पाप सज्जन हैं और जहाँ कामवासना में मग्न, मुदित कामीजन यानों पर चढ़ कर वारांगनाओं के साथ बाड्योद्यान में विहार करते हैं। गच्छंस्तूर्ण नभसि तरणिः शंकते नित्यमेवं सौधेष्वेषु स्खलतु मम मा स्यन्दनोऽभ्रंलिहेषु। मेघा यस्यामतिगुरुगृहैः प्राप्य संघट्टमाराद् धूमदारानुकृतिनिपुणा जर्जरा निष्पतन्ति ।।७।। ७७. जहाँ आकाश में शीघ्र चलता हुआ सूर्य नित्य शंका करता है कि कहीं इन गगनचुम्बी सौधों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002079
Book TitleShildutam
Original Sutra AuthorCharitrasundar Gani
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages48
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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