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साथ गुणाकार करने से २२११८४ भेद होते हैं। करणयोग और भवनयोग दोनों के भेद मिलाने से ध्यान के ४४२३६८ भेद होते हैं।२०५
इस प्रकार पंचम अध्याय में आगमकालीन, नियुक्तिकालीन एवं आगमेतर कालीन ध्यान के सभी भेदों का हमने अपनी अल्प बुद्धि के अनुसार स्पष्ट करने का प्रयास किया है।
संदर्भ सूची
१. (क) चत्तारि झाणा पण्णत्तं, तं जहा - अट्टे झाणे, रोहे झाणे, धम्मे झागे, सुके झाणे।
ठानांगसूत्र (आत्मारामजी म.)४।१।१२ (ख) आर्तरौद्र धर्म शुक्लानि। तत्त्वार्थसूत्र, (उमास्वाति) ९/२९
__ अहरूदं धम्मं सुक्कं झाणाई - ध्यानशतक (जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण) गा.५ २.(क) अट्टे झाणे चठविहे पण्णत्ते, तं जहा -अमणुनसंपओगसंपउत्ते, तस्स
विप्पओगसति समण्णागए यावि भवइ। मणुनसंपओग संपउत्ते, तस्स अविप्पओगसतिसमण्णागए यावि भवइ। आयक संपओग संपउत्ते, तस्स विप्पओगसतिसमण्णागए यावि भवइ। परिजुसियकामभोगसंपओग संपउत्ते, तस्स अविप्पओगसतिसमण्णागए यावि भवइ।
ठानांग सूत्र (आ. म.)४/१/१२ (ख) तत्त्वार्थसूत्र ९/३१-३४ (ग) ज्ञानार्णव २५/२४
(घ) ध्यान प्रदीप (विजयकेसर सूरि) ५/७० ३. (क) ध्यान शतक (जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण) गा. ७ (ख) सर्वार्थ सिद्धि ९/३० की टीका
ज्ञानर्णव २५/२५-२८ (घ) ध्यान दीपिका गा.७१-७२ (ङ) सिद्धान्तसार संग्रह (नरेंद्र सेनाचार्य) ११/३७ (च) श्रावकाचार संग्रह भा. ५, पृ. ३५१ (गा. ६)
(ग)
ज्ञान
ध्यान के विविध प्रकार
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