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________________ मानव शरीर और योग ६ प्रखरता और तीक्ष्णता तो प्राणमय कोष पर निर्भर रहती है, यानी जिसका प्राणमय कोष जितना तेजस्वी होगा उसकी बुद्धि भी उतनी ही तीव्र होगी; लेकिन वह बुद्धि परोपकार, निर्माण आदि शुभ कार्यों में प्रवृत्त होगी अथवा अशुभ कार्यों में प्रवृत्त होकर पर-पीड़क बन जायेगी-यह मनोमय कोष पर निर्भर है। जिस व्यक्ति का मनोमय कोष जितना निर्मल होगा उसकी प्रवृत्तियाँ भी उतनी ही शुभ होंगी। (४) विज्ञानमय कोष विज्ञानमय कोष आत्मा पर चौथा आवरण है। यह और भी सूक्ष्म होता है। सूक्ष्मता की दृष्टि से यह उपयुक्त तीनों कोषों से अधिक सूक्ष्म होता है । विज्ञानमय कोष में अवस्थित बुद्धि सारग्राही बन जाती है। विज्ञानमय कोष में संकल्प-विकल्प और संवेगों की अवस्थिति नहीं होती, क्योंकि वे सब मन के कार्य हैं। (५) आनन्दमय कोष यह आत्मा का अन्तिम आवरण है और आत्मा के निकटतम सम्पर्क में है। यह आत्मा के आनन्दमय स्वरूप को ढकता है। यद्यपि यह पौद्गलिक है, किन्तु इतना सूक्ष्म है कि आत्मिक आनन्द को पूरी तरह आवृत नहीं कर पाता है। ये पाँचों प्रकार के कोष अथवा आत्मा के आवरण पौद्गलिक होते हुए भी उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं। आत्मा इन सबसे अलग चेतन द्रव्य है, वही इन सबका नियंता है । इस आत्मा को पहचानने व अनुभव करने के लिए योगसाधना ही एक मार्ग है। योग द्वारा आत्मा का दर्शन, स्वसंवेदन, आत्मानुभूति, आत्मा का ज्ञान और आत्मा का जागरण सम्भव होता है । आध्यात्मिक साधना का लक्ष्य योग साधना को ही आध्यात्मिक साधना कहा जाता है । आध्यात्मिक साधना का लक्ष्य है-शरीर और मन की शक्ति को जागृत करना। जैन आगमों का स्पष्ट आघोष है कि तप-साधना वही उचित है, जिसमें इन्द्रियों, शरीर और मन की शक्ति क्षीण न हो और चित्त में आकूलता न उत्पन्न हो, मन सहज रूप से ध्येय की ओर उन्मुख हो और समाधि की प्राप्ति हो । __आत्मिक साधना के नाम पर शरीर और इन्द्रियों को अत्यधिक कृश करके उन्हें अक्षम बना देना उपयुक्त नहीं है। यह निश्चित है कि शरीर के बिना आध्यात्मिक साधना नहीं हो सकती और दुर्बल शरीर से भी साधना होना सम्भव नहीं है । इसीलिए कहा गया है-'शरीरमाद्यं खलुधर्म साधनम्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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