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जैन योग : सिद्धान्त और साधना
यह नवकार मंत्र के चौथे पद णमो उवज्झायाणं' की साधना है।
णमो लोए सव्वसाहूणं इस पद की साधना शक्ति केन्द्र (मणिपूर चक्र-नाभि कमल-नाभिस्थान) में चित्त की वृत्ति को एकाग्र करके की जाती है, तथा इस पद का वर्ण 'श्याम (काला) है-कस्तूरी जैसा चमकदार काला ।
इस पद का ध्यान भी चार सोपानों में किया जाता है।
सम्पूर्ण साधना विधि उपयुक्त जैसी ही है। विशेष यह है कि इस पद का ध्यान श्याम वर्ण में किया जाता है।
यद्यपि साधारणतया लोक प्रचलित मान्यता के अनुसार श्याम वर्ण अप्रशस्त है; किन्तु योग में श्याम वर्ण का अत्यधिक महत्त्व है। चमकदार काला रंग अवशोषक होता है, वह अन्दर की ऊर्जा को बाहर नहीं जाने देता है और बाहर के कुप्रभाव को अन्दर नहीं आने देता। काले रंग की साधना से साधक एक प्रकार से outer.proof हो जाता है।
__शक्ति केन्द्र, श्याम वर्ण और ‘णमो लोए सव्वसाहूणं' के संयोग से साधक कष्ट-सहिष्णु, उपसर्ग-परीषह को समभाव से सहन करने में सक्षम हो जाता है। बाह्य निमित्तों से अप्रभावित रहने के कारण वह इन्द्रिय और मनोविजेता बन जाता है । मनोविजय से उसकी प्राणधारा शुद्ध होती है और वह प्राणधारा शक्ति केन्द्र को बलशाली बनाती है, उसकी शक्ति और चेतना ऊर्ध्व गति की ओर संचरण करने लगती है, चेतनाधारा का ऊर्ध्वारोहण होता हैं।
___ यह नवकार मन्त्र के पांचवें और अन्तिम पद ‘णमो लोए सव्वसाहूणं' की साधना है।
विशेष-इन पाँचों पदों की साधना से कुछ विशिष्ट लाभों की प्राप्ति भी साधक को होती है।
___ 'णमो अरिहंताणं' पद की साधना से साधक का आवरण (ज्ञानावरण, दर्शनावरण कर्म का आवरण) और अन्तराय कर्म का क्षय होता है, उसकी ध्वंस शक्ति-बुराइयों को विनाश करने की शक्ति प्रचण्ड बनती है तथा उसकी दिव्य श्रवण शक्ति का विकास होता है।
__ 'णमो सिद्धाणं' पद की साधना से शाश्वत सुख की अनुभूति होती है, कार्य साधिका शक्ति प्रखर होती है, ज्ञान शक्ति का विकास होता है, दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है।
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