________________
४ मंत्र - शक्ति - जागरण
safe प्रकम्पनों की व्यापकता
यह समूचा ब्रह्मांड (लोक) ध्वनि प्रकम्पनों से आपूरित है । अक्षरात्मक और अनक्षरात्मक ध्वनि की तरंगों से व्याप्त है । भाषा अथवा ध्वनि के पुद्गल क्षण- प्रतिक्षण निकलते रहते हैं और वातावरण को उद्वेलित करते रहते हैं -
जो हम बोलते हैं, वह शब्द ध्वन्यात्मक होते हैं; किन्तु जो हम सोचते हैं चिन्तन-मनन करते हैं, वह विचार भी शब्दात्मक होते हैं । मन का चिन्तनभूतकाल की स्मृति, भविष्य की योजना और वर्तमान के विचार, सभी शब्द - रूप हैं, इनसे भी शब्द उत्पन्न होता है; किन्तु वह कानों से सुनाई नहीं देता ।
एक साधक मौन है, उसके होठ भी नहीं हिल रहे हैं, ध्वनि उत्पादक कण्ठ के यंत्रों से ध्वनि भी नहीं निकल रही है, पूर्णतया सहज और शान्त है; फिर भी उसके भाषा वर्गणा के पुद्गल विचार तरंगों के माध्यम से वातावरण में प्रसारित हो रहे हैं, यह एक तथ्य है ।
ध्वनि अथवा शब्दों के कर्णगोचर होने की स्थिति तो तब आती है जब हम कण्ठ के स्वर यंत्रों का प्रयोग करते हैं ।
आधुनिक विज्ञान की भाषा में हमारे कान केवल ३२,७४० प्रति सैकिण्ड की गति के कम्पनों को हो ग्रहण कर सकते हैं, यानी जब किसी वस्तु में इतने कंपन हों तब हम ध्वनि को सुन सकते हैं तथा ४०,००० कम्पन ( अथवा इससे अधिक हों तो वह ध्वनि हमारी श्रवण शक्ति की सीमा से बाहर हो जाती है, हम उसे सुन नहीं सकते, वह हमारे लिए ultrasonic अथवा Supersonic हो जाती है ।
सामान्य वार्तालाप में हमारे शरीर में स्थित स्नायु लगभग १३० बार प्रति सैकिण्ड की गति से झनझनाते हैं । हमारे साधारण वार्तालाप के शब्दों की ध्वनि तरंगें १० फीट दूर तक जाती हैं और चिन्तन करते समय शरीर से
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org