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________________ ३५० जन योग : सिवान्त और साधना आधुनिक विज्ञान के अनुसार विचारों की गति २२,६५,१२० मील प्रति सेकिण्ड है। यानी विद्यत तरंगों से भी विचार-तरंगों को गति लगभग सात गुनी है। विचार एक क्षण में ही पृथ्वी की लगभग ४० बार परिक्रमा लगा सकते हैं, अतः विचार शोघ्र ही दूरस्थ व्यक्ति तक पहुंच जाते हैं। योगी अपनी प्राणशक्ति तथा मस्तिष्कीय विद्य त शक्ति के सहयोग से अपने विचारों की तरंगों को विद्यत तरंगों में परिवर्तित कर सकता है, वे विद्यत तरंगें आकाश में चलती हुई उस विशिष्ट व्यक्ति तक पहुँचती हैं, उसका मनरूपी एरियल उन विद्यत तरंगों को पकड़ता है और पुनः विचारों में परिवर्तित कर देता है अर्थात् वह दूरस्थ व्यक्ति योगी के सन्देश को जान लेता है। साधारण भाषा में कहा जा सकता है कि जिस प्रकार बेतार के तार द्वारा संदेश प्रसारित किया जाता है, उसी प्रकार प्राणशक्ति द्वारा योगी भी अपना सन्देश अपने भक्तों तक पहुँचा देता है। पुराणों में जो यह वर्णन आता है कि गुरु अपने शिष्यों को दूर बैठे ही आशीर्वाद दे देते थे और शिष्य उसे पाकर निहाल हो जाते थे, इसी प्रकार शिष्य द्वारा प्रणाम, वन्दना आदि को दूर बैठे गुरु स्वीकार कर लेते थे, वह सब इस प्राणशक्ति द्वारा विचार संप्रेषण का ही प्रयोग कहा जा सकता है । शक्तिपात (Pass) आधुनिक युग में शक्तिपात शब्द काफी प्रचलित है । योगी और तथाकथित भगवान अपने भक्तों को शक्तिपात द्वारा प्रभावित करते हैं। शक्तिपात करने वाला योगी भक्त की अपेक्षा बढ़ी हुई प्राणशक्ति से सम्पन्न तो होता ही है । एक स्वस्थ मनुष्य की हाथ की अंगुलियों के पोरुओं से साधारणतः ६ इंच बाहर तक प्राण शरीर का विद्य त प्रवाह विकीर्ण होता रहता है । इस विद्य त प्रवाह को योगी अपनी दृढ़ मनोशक्ति से घनीभूत कर लेता है । ऐसा एक साधारण व्यक्ति भी दृढ़ मनोबल से कर सकता है, इसमें योगी की कोई बहुत बड़ी विशेषता नहीं है। __शक्तिपात देते समय योगी मन ही मन दृढ़तापूर्वक Auto suggestion देता है कि 'मेरी अंगुलियों से अत्यन्त तीव्र विद्य त शक्ति प्रवाहित हो रही है और मेरे सामने लेटे अथवा बैठे इस मनुष्य (the subject) के शरीर में प्रवेश कर रही है।' कुछ तो योगी का प्रभाव, कुछ उसकी विद्य त शक्ति का सघन प्रवाह और सर्वाधिक भक्त की योगी के प्रति श्रद्धा एवं असोम आदर भाव-इन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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