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सेवामूर्ति महान सरलाात्मा उपप्रर्वतक : नवयुग सुधारक
....भंडारी श्री पदमचंद जी महाराज
कुछ लोग अपने माता-पिता तथा गुरु के नाम से प्रसिद्ध होते हैं, तो कुछ लोग अपने ज्ञान व अध्ययन-डिग्री आदि के कारण । किंतु कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपनी सेवा और उदारता के कारण ही प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं ।
हमारे पूज्य गुरुदेव श्री पदमचंद जी महाराज अपनी उदारता, सेवाभावना के कारण समाज में प्रारंभ से ही 'भंडारी जी' के नाम से प्रसिद्ध हैं । आचार्य सम्राट श्री आत्माराम जी महाराज ने ही आपकी सेवा और सब के लिए, सब कुछ समर्पण की भावना को देखकर भंडारी नाम का प्यारा व सार्थक सम्बोधन दिया था। आचार्यश्री के प्रमुख शिष्य प्रकाण्ड पंडित और शान्तमूर्ति पंडित श्री हेमचन्द्र जी महाराज आपके दीक्षागुरू थे। प्रारंभ से ही आप गुरुदेव तथा दादागुरु आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज की सेवा में रहे । साधु-सन्तों की सेवा, उनके लिए हर समय एक सिपाही की तरह सेवा में तैयार रहते थे । आचार्यश्री की अन्तिम अवस्था में तो आपने उनकी अभूतपूर्व सेवा की जिसके कारण उन्हें परम शान्ति व समाधि अनुभव हुई।
गुरुदेव श्री भंडारी जी महाराज ने राष्ट्रसंत आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी म. राष्ट्रसंत श्री अमरमुनि जी, पं० गुरुदेव स्व० श्री हेमचन्द जी महाराज आदि महान सम्तों की बड़ी श्रद्धा व समर्पण वृत्ति से सेवा की है।
आपश्री स्वभाव से बहुत ही सरल, निष्पह, नाम की कामना से दूर रहते हुए धर्म का प्रचार करते हैं । आपके सदुपदेश तथा प्रेरणा से आपश्री के सुयोग्य शिष्य श्री अमरमुनि जी महाराज के मार्गदर्शन से पंजाब एवं हरियाणा में स्थान-स्थान पर धर्मस्थानक, जैन हॉल, विद्यालय आदि का निर्माण हुआ है । आप श्री जी की प्रेरणा व प्रयत्न से पटियाला यूनीवर्सिटी में 'जैन चेयर' की स्थापना हुई जहाँ जैन धर्म, दर्शन व साहित्य पर विशेष शोध-अध्ययन चल रहा है ।
जैन शासन एवं श्रमण संघ की उन्नति-अभ्युदय में आपका योगदान इसी प्रकार दीर्घकाल तक मिलता रहे, और आप स्वस्थ एवं दीर्घजीवन प्राप्त करें-यही मंगल भावना है।
प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन प्रकाशन में मूल प्रेरणा स्रोत भी आप ही हैं।
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