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( १८ ) उपयोगी है। यह पुस्तक विद्वत्समाज में बहुत समादृत हुई । जिज्ञासु वृन्द इससे लाभान्वित हुए । इसे प्रकाशित हुए काफी समय हो गया है । इस समय यह प्राप्त भी नहीं है।
हमारे श्रमण संघ के सुयोग्य, परम सेवाशील, वरिष्ठ संत भंडारी जी श्री पदमचन्द जी म० के विद्वान् अन्तेवासी, कुशल लेखक श्री अमर मुनि जी म० ने उपर्युक्त पुस्तक का एक बृहत् ग्रन्थ के रूप में परिष्कृत, परिवधित संस्करण तैयार कर बड़ा उत्तम कार्य किया है। योग के तुलनात्मक अध्ययन के साथ-साथ इदानीन्तन युग में प्रयोज्य साधना-पद्धतियों पर भी उन्होंने प्रकाश डाला है, जो श्लाघनीय है। ऐसा ग्रन्थ जन-जन के हाथों में पहुँचे, यह बड़े हर्ष का विषय है। इसके लिए मैं भंडारी श्री पदमचन्द जी म० को, जो श्री अमर मुनि जी के कृतित्व के प्रेरणा-स्रोत हैं तथा श्री अमर मुनि जी का, जो जीवन निर्माणात्मक. साहित्य-सर्जन में तन्मयतापूर्वक यत्नशील हैं, अपनी उत्तमोत्तम कृतियों द्वारा भारती का भंडार भर रहे हैं, हृदय से वर्धापित करता है। श्री अमर मुनि जी के श्लाघनीय प्रयत्नों से श्रमण संघ की गरिमा में चार चांद लगे हैं, मैं उनके संयम-संपृक्त श्रुतोपासनामय जीवन की उत्तरोत्तर समुन्नति की सत्कामना करता हूँ। नेमाणी बंगला, पंचवटी, नासिक
-युवाचार्य मधुकर मुनि श्रावण-शुक्ला प्रतिपदा, वि० सं० २०४०
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