SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योग की आधारभूमि : श्रद्धा और शील [१] ११३ उसे अपने स्वीकृत व्रतों में तनिक भी दोष नहीं लगाना चाहिए, निर्दोष रूप से व्रतों का पालन करना चाहिए। श्रावक के बारह व्रत ये हैं-(१) पाँच अणुव्रत, (२) तीन गुणव्रत और (३) चार शिक्षावत । श्रावक इन सभी व्रतों को दो करण और तीन योग से ग्रहण करता है। योग तीन हैं-मन, वचन और काया तथा करण भी तीन हैं—कृत, कारित, अनुमोदना । इनमें श्रावक अनुमोदना का त्यागी नहीं हो पाता।' अणुव्रत श्रावक के अणुव्रत पाँच हैं—(१) स्थूल प्राणातिपातविरमण, (२) स्थूल मृषावादविरमण, (३) स्थूल अदत्तादानविरमण, (४) स्वदार-सन्तोष व्रत (५) स्थूल परिग्रहपरिमाण व्रत अथवा इच्छा परिमाण व्रत । (१) स्थल प्राणातिपातविरमण इसका दूसरा नाम अहिंसाणुव्रत है। इसमें श्रावक स्थूल अथवा त्रस जीवों की हिंसा का त्याग करता है। ___ संसार में स्थावर और त्रस अथवा सूक्ष्म और स्थूल दो प्रकार के जीव हैं। पृथ्वीकाय, जलकाय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय-ये पाँचों प्रकार के जीव स्थावर कहलाते हैं। गृहस्थ श्रावक इन स्थावरकाय के जीवों की हिंसा का त्याग नहीं कर पाता, क्योंकि गार्हस्थिक तथा सामाजिक जीवन सूचारु रूप से बिताने के लिए वह इन जीवों की हिंसा से बच नहीं सकता है; फिर भी वह इनकी हिंसा भी कम से कम अर्थात् मर्यादित रूप से ही करता है। श्रावक त्रस जीवों की हिंसा का त्यागी होता है। उसमें भी वह निरपराधी त्रस जीवों की हिंसा का ही त्याग कर पाता है, अपराधी जीवों की हिंसा का त्याग नहीं कर पाता। हिंसा के प्रमुख रूप से दो भेद हैं-(१) भाव-हिंसा और (२) द्रव्यहिंसा । मन-वचन-काय में राग-द्वेष आदि कषायों की वृत्ति भाव-हिंसा है और कषायों की तीव्रता के आवेश में बहकर अपने को अथवा दूसरे को कष्ट देना, पीडित करना द्रव्याहिंसा है। श्रावक इन दोनों प्रकार की हिंसाओं का यथाशक्ति त्याग करता है। हिता १ श्रावकधर्म के विशेष अध्ययन हेतु पढ़ें-जन तत्त्व कलिका : अष्टम कलिका (आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy