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( १५ ) वि० सं० १९६६ में पंजाब प्रान्त के उपाध्याय बने । वि. सं. २००३ में पंजाब संघ के आचार्य और फिर अपनी बहुमुखी योग्यता एवं लोकप्रियता के कारण वि. सं. २००६ अक्षय तृतीया को श्री वर्धमान स्थानकवासी श्रमणसंघ के प्रथम आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए।
वि. सं. २०१८ (ई. सन. १६६१) में शारीरिक अस्वस्थता ने जोर पकड़ा और ३१ जनवरी १६६१ को समता एवं समाधि पूर्वक नश्वर शरीर का त्याग किया।
आपश्री की साधना बड़ी उच्चकोटि की व चमत्कारी थी । ज्ञान तो उससे भी प्रचण्ड चमत्कारी था । शताब्दियों में ही ऐसा कोई महान् आचार्य पैदा होता है, जो धर्म एवं समाज, राष्ट्र एवं विश्व सभी का आध्यात्मिक उत्कर्ष करने में समर्थ होता है।
उस युगपुरुष महान आचार्य को शतशत नमन !
-विजयमुनि शास्त्री
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