________________
प्रज्ञा-पुरुष आचार्यश्री आत्माराम जी महाराज
परम श्रद्धेय आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज एक युगपुरुष थे। सम्पूर्ण जैन समाज में वे विशाल हृदय के प्रज्ञा मेधा के प्रज्वलित दीप की भांति प्रकाशकर थे । उनके जीवन में जैन धर्म, दर्शन, संस्कृति और सभ्यता साकार हुए थे। ऐसा लगता था कि उनका अणु-अणु, रोम-रोम ज्ञानमय था ।
बातचीत में वे बहुत ही पट, साथ ही विनोदप्रिय थे। अनुशासन में दृढ़ व दक्ष भी थे, साथ ही स्वयं अनुशासन का पालन करने के कठोर पक्षधर थे । आचार व्यवहार में सात्विक अति सहज होते हुए भी वे अपनी मर्यादा एवं नियमों के प्रति बड़े जागरूक व अति दृढ़ थे।
संस्कृत-प्राकृत-पालि जैसी प्राचीन भाषाओं पर आपका असाधारण अधिकार था । जैन आगमों पर सरल हिन्दी में उच्चस्तरीय टीकाएँ लिखकर आपने प्राचीन आगम ज्ञान को युग की भाषा प्रदान की।
आपका जन्म !वि० सं० १९३६ भाद्रपद शुक्ला द्वादशी को जालन्धर जिला के राहों ग्राम में हुआ था।
क्षत्रिय कुल (चोपड़ावंश) के सेठ मनसाराम जी आपके पिता एवं श्री परमेश्वरी देवी माता थी।
बचपन में माता-पिता का साया उठ गया । संघर्ष एवं कठिनाइयों में बचपन बीता । लुधियाना में जैनाचार्य श्री मोतीराम जी महाराज के चरणों में अचानक पहुँच गये । बस, पारस से भेंट हो गई तो सोना बनते क्या देर ! वैराग्य एवं विवेक के संस्कार जगे और जैन श्रमण बनने का सृदृढ़ संकल्प जग गया।
वि० सं० १६५१ आषाढ़ शुक्ला ५ छतबनूड (पटियाला) में श्रद्धय श्री सालिगराम जी महाराज के सानिध्य में श्रमण दीक्षा ग्रहण की। इस प्रकार दीक्षागुरु बने श्री सालिगराम जी महाराज तथा विद्यागुरु बने आचार्य श्री मोतीराम जी महाराज।
प्रखर प्रतिभा, तीव्र स्मरण शक्ति और दृढ़ अध्यवसाय के बल पर संस्कृतप्राकृत भाषा पर अधिकार प्राप्त किया।
- जैन आगम, टीका, भाष्य तथा वेद, उपनिषद, महाभारत, गीता, स्मृति, आदि धर्म ग्रन्थों का गहन तुलनात्मक अध्ययन कर प्रगाध पाण्डित्य प्राप्त किया।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org