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________________ ७२ खजुराहो का जैन पुरातत्व ब्राह्मण साधु श्मश्रु से युक्त है। दक्षिणी शिखर के एक उदाहरण में किसी जैन आचार्य के समक्ष कुछ आचार्यों को उपदेशों का श्रवण करते हुए दिखाया गया है। खजुराहो में अन्यत्र की भांति दो जैन आचार्यों को आमने-सामने बैठकर शास्त्रार्थ करते हुए भी आकारित किया गया है। साथ ही स्थापना पर पुस्तक के साथ उनका उपदेश की मुद्रा में भी अंकन हुआ है। घण्टई मंदिर में अर्धमण्डप के स्तंभों एवं वितान पर जैन आचार्यों की अनेक आकृतियाँ हैं। इनमें उन्हें स्थापना तथा पुस्तिका के साथ व्याख्यान देते या दूसरे जैन आचार्य के साथ शास्त्रार्थ करते हुए दिखाया गया है। जैन आचायों के शास्त्रार्थ से सम्बन्धित एक विशिष्ट उदाहरण शांतिनाथ मंदिर में है। इसमें दो जैन आचार्यों को आसने-सामने बैठे तथा एक हाथ में पुस्तिका लिए और दूसरे हाथ से व्याख्यान देते हुए दिखाया गया है। मध्य में एक स्थापना भी उत्कीर्ण है जिस पर एक पुस्तक रखी है । स्थापना के ऊपर के भाग में दो कायोत्सर्ग तथा एक ध्यानस्थ तीर्थकर मूर्तियाँ बनी हैं। पीठिका पर चार कलश और चार साधुओं की आकृतियाँ भी हैं, जो जैन आचार्यों के शास्त्रार्थ का श्रवण कर रही हैं। मयूरपिच्छिका से युक्त इन जैन साधुओं के हाथ नमस्कारमुद्रा में हैं। सरस्वती विद्या और संगीत की देवी के रूप में सरस्वती की आराधना अत्यन्त प्राचीन है । वेदों में सरस्वती का देवी के रूप में उल्लेख हुआ है । बौद्ध एवं जैन धर्मों में भी सरस्वती को सम्मानजनक स्थिति प्रदान की गयी। बौद्ध धर्म में सरस्वती का प्रज्ञापारमिता के रूप में उल्लेख है और उसके हाथों में पुस्तक के प्रदर्शन का विधान है। पुस्तक को बुद्ध के उपदेशों का मूर्त रूप माना गया। प्रारम्भिक जैन ग्रंथों में सरस्वती का श्रुतदेवता के रूप में उल्लेख है और उन्हें मेधा एवं बुद्धि का देवता बताया गया है।' भगवतीसूत्र एवं पउमचरिय में श्री, धृति, कीर्ति और लक्ष्मी के साथ बुद्धि की देवी का उल्लेख आया है । जिन वाणी को आगम या श्रुत कहा गया और संभवतः इसी कारण जैन आगमिक ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती के हाथ में पुस्तक प्रदर्शित किया गया । देवगढ़ के मंदिर १ की त्रितीर्थी जिन मूर्ति ( ११वीं शती ई० ) में जिनों के साथ चतुर्भुजा सरस्वती का अंकन संभवतः इसी भाव की मत अभिव्यक्ति है। ___ सरस्वती की प्राचीनतम स्वतंत्र मूर्ति कुषाणकाल ( १३२ ई० ) में मथुरा में बनी। यह जैन सरस्वती की मूर्ति है। इस मूर्ति में देवी के एक हाथ में पुस्तक है और दूसरे में अक्षमाला का कुछ भाग शेष है। जैन ग्रंथों में यद्यपि सरस्वती का लाक्षणिक स्वरूप १. अंगविज्जा, अ० ५८, पृ० २२३, २८२ । २. भगवतीसूत्र ११. ११. ४३०; पउमचरिय ३.५९ । ३. जैन, ज्योतिप्रसाद, “जेनेसिस आव जैन लिट्रेचर ऐण्ड दि सरस्वती मूवमेन्ट", संग्रहालय पुरातत्व पत्रिका, अंक ९, जून १९७२, पृ० ३०-३३ । ४. राज्य संग्रहालय, लखनऊ, जे० २४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002076
Book TitleKhajuraho ka Jain Puratattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherSahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
Publication Year1987
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Art, & Statue
File Size10 MB
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