________________
अन्य देव मूर्तियाँ चामरधर सेवक, गन्धर्व ) के लक्षणों से युक्त है और वहीं दूसरी ओर दिगम्बर परम्परा के अनुरूप इसमें विद्याधरियों की आकृतियाँ भी बनी हैं।
सा० शां० ज० क० संग्रहालय की चौथी मुर्ति ( १२वीं शती ई० ) प्रतिमालक्षण की दृष्टि से और भी महत्त्वपूर्ण है। इस उदाहरण में बाहुबली के साथ विद्याधरियों एवं अष्टप्रातिहार्यों के साथ ही यक्ष-यक्षी युगल भी आकारित हैं । यक्ष-यक्षी ऋषभनाथ के यक्ष-यक्षी गोमुख-चक्रेश्वरी हैं। जैन युगल
जैन धर्म में तीर्थंकरों के माता-पिता को विशेष सम्मानजनक स्थिति प्रदान की गई है और विभिन्न प्रसंगों में २४ तीर्थंकरों के माता-पिता के नामों एवं पूजन से सम्बन्धित उल्लेख प्राप्त होते हैं ।' लगभग नवीं शती ई० के बाद इनका मूत अंकन भी प्रारम्भ हुआ । मूर्तियों एवं चित्रों में माताओं का निरूपण अपेक्षाकृत अधिक लोकप्रिय था ।
दिगम्बर स्थलों पर स्त्री-पुरुष युगल मूर्तियों का निर्माण लगभग छठी शती ई० के बाद प्रारम्भ हुआ। देवगढ़, खजुराहो, राजगिर, लच्छागिरि, गुर्गो तथा अन्य अनेक स्थलों पर जैन युगलों की प्रचुर मूर्तियाँ हैं । इन मूर्तियों में स्त्री-पुरुष युगल को ललितमुद्रा में एक वृक्ष के नीचे आसीन और एक हाथ से अभय या वरद-मुद्रा अभिव्यक्त करते हुए दिखाया गया है । स्त्री की बायीं गोद में सामान्यतः एक बालक प्रदर्शित है जिसे स्त्री अपने एक हाथ से सहारा देते हुए दिखाई गई है। स्त्री की गोद में बालक का अंकन उसके मातृ पक्ष को उजागर करता है। पुरुष का बायाँ हाथ या तो घुटनों पर है या फिर उसमें फल या पद्म प्रदर्शित है । कभी-कभी पुरुष के इस हाथ में एक बालक भी दिखाया गया है। इन मूर्तियों के शीर्ष भाग में एक वृक्ष और उसके मध्य तीर्थंकर की बिना लांछन वाली एक ध्यानस्थ मूर्ति बनी होती है । इन मूर्तियों को सामान्यतः जैन युगल नाम से अभिहित किया गया है । यद्यपि इन्हें तीर्थकरों के माता-पिता से पहचानने में विद्वानों ने संकोच का अनुभव किया है, किन्तु खजुराहो के दो उदाहरणों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि ये मूर्तियाँ तीर्थंकरों के माता-पिता की ही हैं। एक उदाहरण में (मन्दिर १३) की कुंथुनाथ मूर्ति (ल०११वीं शती ई०) में पीठिका के ऊपरी भाग में कुंथुनाथ का अज-लांछन तथा नीचे उपर्युक्त विवरणों वाली स्त्री-पुरुष युगल आकृतियाँ उकेरी हैं जो निश्चित ही कुंथुनाथ के माता-पिता की आकृतियां हैं । जाडिन संग्रहालय, खजुराहो ( क्रमांक १५९५ ) की एक मूर्ति में युगल आकृतियों के नीचे वृषभ अंकित है जो उनके ऋषभनाथ के माता-पिता होने का भाव व्यक्त करता है । दिगम्बर स्थलों की युगल मूर्तियों में शीर्षभाग में अलग-अलग वृक्षों का अंकन हुआ है जो
१. शाह, यू० पी०, 'पेरेन्ट्स आव दि तीर्थंकरज', बुलेटिन आव दि प्रिंस आव वेल्स
म्यूजियम, बम्बई, अंक ५, १९५५-५७, पृ० २४ ।। २. यू० पी० शाह ने इन मूर्तियों की पहचान तीर्थंकरों के माता-पिता से की है । शाह,
यू० पी०, पूर्व निविष्ट, २८-३२ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org