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तोर्यकर या जिन मूतियाँ
४१ हैं।' ल० सातवीं-आठवीं शती ई० से जिन मूर्तियों में यक्ष-यक्षियों का नियमित अंकन होने लगा जिसके प्रारम्भिक उदाहरण बादामी, अयहोल, वाराणसी, मथुरा, ओसियाँ एवं अकोटा से मिले हैं।
ल० आठवीं-नवीं शती ई० में २४ जिनों के लांछन और उनके यक्ष-यक्षी युगलों की सूची निर्धारित हुई। प्रारम्भिकतम सूचियाँ कहावली, तिलोयपण्णत्ति (४.६०४-०५, ९३४-३९) एवं प्रवचनसारोद्धार (३७५-७८, ३८१-८२) में हैं। २४ यक्ष-यक्षी युगलों की स्वतंत्र लाक्षणिक विशेषतायें ल० ११ वीं-१२ वीं शती ई० में नियत हुईं, जिनके उल्लेख निर्वाणकलिका, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, प्रतिष्ठासारसंग्रह और प्रतिष्ठासारोद्धार में हैं। गुजरात और राजस्थान में श्वेतांबर परंपरा तथा अन्य क्षेत्रों में दिगम्बर परंपरा की मूर्तियाँ बनीं।
२४ जिनों में ऋषभनाथ, नेमिनाथ, पाश्र्वनाथ और महावीर की ही सर्वाधिक मुर्तियाँ बनीं । उत्तर भारत में नेमिनाथ और महावीर की अपेक्षा ऋषभनाथ और पार्श्वनाथ की अधिक मूर्तियाँ हैं । दक्षिण भारत में नेमिनाथ की मूर्तियों का लगभग अभाव है और पार्श्वनाथ एवं महावीर की सर्वाधिक मूर्तियाँ हैं। दक्षिण भारत में ऋषभनाथ की मूर्तियाँ अत्यल्प हैं। इस प्रकार उत्तर भारत में ऋषभनाथ और पार्श्वनाथ तथा दक्षिण भारत में पार्श्वनाथ और महावीर की उपासना सर्वाधिक लोकप्रिय थो । इन्हीं चार जिनों से सम्बन्धित यक्ष और यक्षियाँ भी विशेष लोकप्रिय थीं। जैन स्थलों पर ऋषभनाथ के गोमुख-चक्रेश्वरी, नेमिनाथ के सर्वानुभूतिअम्बिका, पार्श्वनाथ के धरणेन्द्र-पद्मावती और महावीर के मातंग-सिद्धायिका की सर्वाधिक मूर्तियाँ बनों । रूपमण्डन में भी स्पष्टतः २४ तीर्थंकरों में से उपर्युक्त चार जिनों एवं उनसे सम्बन्धित यक्ष-यक्षियों को विशेषरूप से पूज्य बताया गया है । खजुराहो की तीर्थकर मूर्तियाँ : सामान्य निरूपण
अन्य जैन स्थलों की भाँति खजुराहो में भी तीर्थंकरों की ही सर्वाधिक मूर्तियाँ हैं । यहाँ लगभग ९५० से ११५० ई. के मध्य की २०० से अधिक जिन मूर्तियाँ हैं । खजुराहो के कुछ ब्राह्मण मंदिरों पर भी जिन मूर्तियों का अंकन हुआ है । ये मूर्तियाँ साम्प्रदायिक सौहार्द की साक्षी है । देवी जगदम्बी और विश्वनाथ मंदिरों के अधिष्ठानों पर जिनों को ऐसी मूर्तियाँ हैं। खजुराहो में जिनों की स्वतंत्र मूर्तियों के साथ ही उनकी द्वितीर्थी, त्रितीर्थी और चौमुखी १. विस्तार के लिए द्रष्टव्य, चन्दा, आर० पी० "जैन रिमेन्स ऐट राजगिर" आकियोलॉजि
कल सर्वे आफ इण्डिया, ऐनुअल रिपोर्ट, १९२५-२६, पृ० १२५-२६; तिवारी, मारुतिनन्दन प्रसाद, "एन अनपब्लिश्ड जिन इमेज इन दि भारत कला भवन, वाराणसी", विश्वेश्वरानन्द इन्डोलॉजिकल जर्नल, खं० १३, अं० १-२, पृ० ३७३-७५; शाह, यू० पी०,
अकोटा ब्रोन्जेज, बम्बई, १९५९, पृ० २८-२९ । २ रूपमण्डन ६२५-२७ । ३. इस संख्या में मदिरों का दोवारों ओर उत्तरंगों की छोटी जिन मूर्तियां नहीं सम्मिलित है। ४. भुवनेश्वर के मुक्तेश्वर मंदिर के अधिष्ठान पर भी इसी प्रकार जिनों की आकृतियाँ
बनी हैं।
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