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खजुराहो का जैन पुरातत्व बनीं हैं। द्वार-शाखाओं पर स्त्री-पुरुष युगलों की १८ मूर्तियां हैं जिनमें उन्हें अधिकांशतः वार्तालाप की मुद्रा में या आलिंगनबद्ध दर्शाया गया है। इनमें समाज के विभिन्न वर्गों की आकृतियां हैं।
मन्दिर के विभिन्न भागों पर नृत्य और संगीत तथा शिक्षा और सामान्य जनजीवन से संबंधित विभिन्न दृश्य हैं जो उल्लासमय जीवन के प्रति लोगों की आस्था के साक्षी हैं । नृत्य और संगीत से संबंधित दृश्यों में सामान्यतः दो या अधिक पार्श्ववर्ती वाद्यवादकों के साथ एक स्त्री को नृत्य की मुद्रा में दिखाया गया है। इनमें अधिकांशतः नगाड़ा, मंजीरा या वेणु वादकों की मूर्तियां हैं । कुछ उदाहरणों में नर्तकों की भी आकृतियां देखी जा सकती हैं । इन उदाहरणों में पैरों, हाथों और मुखमुद्रा से नृत्य की विभिन्न चेष्टाओं का अत्यन्त स्वाभाविक और गतिशील रूप प्रकट हुआ है । पश्चिमी भित्ति पर एक पुरुष आकृति को अत्यन्त स्वाभाविक रूप में एक हाथ कान पर रखकर ऊँचे स्वर में गाने की मुद्रा में दिखलाया गया है ।
सामान्य घरेलू दृश्यों में उत्तरी शिखर को मूर्ति महत्वपूर्ण है । इसमें एक पुरुष आकृति के समक्ष दोनों हाथ जोड़कर दर्पण देखती हुई एक स्त्री आकृति बैठी है । जैन साधुओं के अंकन अधिकांशतः शिखर पर हैं। दक्षिणी भित्ति पर श्मश्रुयुक्त साधु की एक आकृति है जिसके समक्ष एक क्षीणकाय आकृति बैठी है। यह संभवतः साधु द्वारा पुरुष आकृति को कुछ समझाने का दृश्य है । इसी प्रकार के दृश्य पूर्वी और पश्चिमी शिखर पर भी हैं। पश्चिमी शिखर के दृश्य में जैन और ब्राह्मण साधुओं के बीच शास्त्रार्थ का अंकन है । दक्षिणी शिखर के एक दृश्य में एक जैन साधु के समक्ष उपदेश श्रवण करती हुई कुछ आकृतियां बैठी हैं ।
मन्दिर के मण्डप तथा गर्भगृह की भित्तियों एवं शिखर पर जिनों की भी कई मूर्तियां हैं । मण्डप और शिखर की जिन मूर्तियों में लांछन और यक्ष-यक्षी नहीं उत्कीर्ण हैं, अतः जिनों की पहचान संभव नहीं है। इनमें सिंहासन, त्रिछत्र, चामरधारी सेवक एवं गज आकृतियों से युक्त मूलनायकों के साथ परिकर में लघु जिन मूर्तियां भी बनी हैं । गर्भगृह की भित्ति की जिन मूर्तियां लांछन, अष्टप्रातिहार्य और यक्ष-यक्षी की आकृतियों से युक्त हैं। इनमें जिनों को नौ मूर्तियों के अतिरिक्त बाहुबली की भी एक मूर्ति है। तीर्थंकरों को ध्यानस्थ और कायोत्सर्ग दोनों ही मुद्राओं में निरूपित किया गया है। तीर्थंकरों के यक्ष-यक्षी सामान्यतः अभयमुद्रा (या पद्म) और फल (या जलकलश) से युक्त हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि तीर्थंकरों के साथ पारंपरिक यक्ष-यक्षो युगलों के स्थान पर सामान्य लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी का अंकन हुआ है। नौ में से केवल चार ही तीर्थंकरों के लांछन स्पष्ट हैं जिनके आधार पर उनकी पहचान अभिनन्दन (कपि), पुष्पदन्त (मकर), चन्द्रप्रभ (शशि) एवं महावीर (सिंह) से की जा सकती है। गर्भगृह में पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथ की आकृतियों से वेष्टित ऋषभनाथ की विशाल मूर्ति है । मण्डप में चारों ओर तीर्थंकरों, जैन युगल एवं अबिका की मूर्तियाँ हैं।
मन्दिर में अम्बिका की कुल तीन मूर्तियाँ हैं, जिनमें से दो मण्डप की दक्षिणी भित्ति एवं शिखर तथा एक मण्डप की भीतरी दोवार में हैं । दो उदाहरणों में अम्बिका चतुर्भुजा और एक में द्विभुजा हैं । मण्डप की उत्तरी और दक्षिणी भित्ति पर चतुर्भुजा लक्ष्मी की भी तीन
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