________________
खजुराहो को जैन कला
२९
पाव
मनियाँ
सामान्यतः वेणुवादन करते हुए दिखाया गया है जबकि स्त्री के एक हाथ में पुष्प है और दूसरा जानु पर स्थित है। पूर्वी भित्ति की एक मूर्ति में विद्याधर को नृत्य की मृद्रा में मंजोरा बजाते हुए भी दिखाया गया है। पार्श्वनाथ मन्दिर के मण्डप अ
भित्तियों पर व्याल की लगभग (२२४८ इंच) हैं। इनमें अधिकांश उदाहरणों में सिंह-व्याल तथा कुछ में गज-व्याल, नरव्याल, शूकर-व्याल, मकर-व्याल तथा शुक-व्याल की मूर्तियाँ हैं। इन मूर्तियों में रौद्रस्वरूप वाली व्याल आकृतियों की पीठ पर सामान्यतः एक खड्गवारी योद्धा आसीन है। योद्धा की एक दूसरी आकृति व्याल के पैरों के समीप बनी है और उसके हाथों में खडुग, खेटक और कभी-कभी चक्र, शूल, अंकुश, गदा या अन्य कोई आयुध प्रदर्शित है। इस आकृति को व्याल से युद्धरत दिखाया गया है। नोचे की आकृति कभी-कभी गज या अश्व पर भी बैठी है । ये व्याल मूर्तियाँ चन्देल शासकों के शौर्य की मूक गाथा हैं ।
मनभावन अप्सरा या सुरसुन्दरियों की मूर्तियों की दृष्टि से पार्श्वनाथ मन्दिर निःसन्देह खजुराहो का सर्वश्रेष्ठ मन्दिर है। मण्डोवर और गर्भगृह की भित्तियों पर कुल ५० अप्सरा मूर्तियाँ है । मनमोहक शारीरिक चेष्टाओं और भावभंगिमाओं वाली ये मूर्तियाँ त्रिभंग या अतिभंग में हैं । ये आकृतियाँ सुन्दर और मांसल शरीर रचना वालो, नाभि-दर्शना, स्वस्थ पयाधरों वाली
और तीखी भंगिमाओं वाली हैं। इनकी सम्पूर्ण शरीर यष्टि से ऐन्द्रिकता का भाव प्रकट होता है। शरीर के विभिन्न अंगों की मांसलता और ऐन्द्रिकता की तुलना में नितम्ब भाग कुछ सपाट जैसा दिखाई देता है। आकृतियों की नासिका लम्बी और तीखी, मुख छोटे और किंचित्, अण्डाकार, ठुढ़ी तीखी, होंठ अपेक्षाकृत चौड़े और कुछ मोटे, आँखें लम्बी और खुली हुयी हैं । आँखों के मध्य में पुतली नहीं बनी है। इन आकृतियों को विभिन्न वस्त्राभूषणों से सज्जित और विविध केश-सज्जा वाला दिखाया गया है। केश-सज्जा सामान्यतः धम्मिल्ल और लम्बे जूड़े के रूप में बनी है । अलंकरणों में अवेयक, हार, स्तन-हार, कई लड़ियों वाली मेखला, कर्णफूल, भुजबन्ध, वलय एवं नूपुर मुख्य हैं। आभूषण अधिकांशतः मोती की लड़ियों से बने है । इन आकृतियों में साड़ियाँ विशेष रूप से आकर्षक रूपरेखा वाली हैं। इनमें विभिन्न पुष्पों
और रेखाओं के माध्यम से विविधतापूर्ण अलंकरण किया गया है। अप्सराओं को चोली भी पहने हुए दिखाया गया है जिसके किनारे स्पष्ट हैं । अप्सराओं की सभी उँगलियों में छल्लेदार अंगूठियाँ और कलाई में चूड़ियाँ हैं। इनमें प्रेमी को पत्र लिखती, दर्पण देखती (दर्पणा), काजल लगातो, अपने को विवस्त्र करती (विवस्त्रजघना), एक हाथ योनि के समक्ष रखकर अपनी नग्नता को छिपाने का यत्न करती, बालक के साथ क्रोड़ा करती, कन्दुक क्रीड़ा करती (यह मूर्ति सम्प्रति खजुराहो के पुरातत्व संग्रहालय में है), अंगड़ाई लेती (अलसकन्या), नृत्य करतो, दर्पण देखकर मांग में सिन्दूर भरती, दुपट्टा पकड़े हुए, दाहिने पैर से काँटा निकालती तथा पद्म, चामर और कलश लिए एवं पायल बाँधती, केश से जल निचोड़ती तथा महावर रचाती हुयी अप्सरा मूर्तियों की प्रमुखता है। विवस्त्रजघना और पत्र लिखती हुयी अप्सरा मूर्तियाँ संख्या में सर्वाधिक हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org