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खजुराहो की जन कला
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विष्णु और शिव के अतिरिक्त मन्दिर पर ब्रह्मा की भी स्वतन्त्र और युगल मूर्तियाँ हैं । मन्दिर की जंघा पर श्मश्रुयुक्त ब्रह्मा की एक स्वतन्त्र मूर्ति है। ब्रह्मा के करों में वरदाक्ष, स्रुक, पुस्तक और कमण्डलु प्रदर्शित है। यहाँ ब्रह्मा के साथ न तो वाहन दिखाया गया है और न ही ब्रह्मा त्रिमुख है । उत्तरी भित्ति पर ब्रह्मा की शक्तिसहित एक मूर्ति है । ब्रह्मा यहाँ तीन मुखों वाले, घटोदर और श्मश्रुयुक्त हैं। उनके दो हाथों में जुक और पुस्तक हैं, जबकि शेष दो हाथों में से एक कटि पर है और दूसरा आलिंगनमुद्रा में है। यहाँ शक्ति को ब्रह्मा के दाहिने पार्श्व में दिखलाया गया है। देवी की वाम भुजा आलिंगनमुद्रा में हैं, जबकि दायें में चक्राकार पद्म है ।
___ जंघा पर बलराम-रेवती, कुबेर-कौबेरी, अग्नि-आग्नेयी, राम-सीता, काम-रति एवं यम-यमी (?) की भी मूर्तियां हैं। दक्षिणी भित्ति की सप्त सर्पफणों के छत्र वाली किरीटमकुट से शोभित बलराम की मूर्ति में दो करों में चषक और हल हैं; एक दाहिना हाथ आलिंगनमुद्रा में है तथा बायाँ कटि पर है। यहाँ भी शक्ति दक्षिण पार्श्व में ही खड़ी है । शक्ति के दाहिने हाथ में सनाल पद्म है, जबकि बायाँ आलिंगनमुद्रा में है। दक्षिणी भित्ति पर ही कुबेर की भी शक्ति सहित मूर्ति है। कुबेर की एक दक्षिण भुजा आलिंगन में है और दो में नकुलक एवं चक्राकार पद्म हैं; चौथी भुजा गदा पर आराम कर रही है। दक्षिण पाश्र्व की कौबेरी की मूर्ति में दाहिने हाथ में चक्राकार पद्म है, जबकि बायाँ आलिंगनमुद्रा में हैं। उत्तरी भित्ति की राम-सीता मूर्ति में किरीट-मुकुट तथा छन्नवीर से सज्जित राम के दो हाथों में एक लम्बा बाण प्रदर्शित है । राम की ऊवं वाम भुजा आलिंगनमुद्रा में है, जबकि नीचे का दाहिना हाथ पालितमुद्रा में दक्षिण पार्श्व में खड़ी कपिमुख हनुमान की आकृति के मस्तक पर है। राम की पीठ पर तूणीर भी प्रदर्शित है । सीता के बायें हाथ में नीलोत्पल है और दाहिना हाथ आलिंगनमुद्रा में है। इस मूर्ति के ऊपर ही सम्भवतः रावण द्वारा सीता से भिक्षा ग्रहण करने का प्रसंग भी उत्कीर्ण है। जटामुकुट से युक्त साधु आकृति (रावण) के भिक्षापात्र में उसके सामने खड़ी स्त्री आकृति (सीता) को भिक्षा डालते हुए दिखाया गया है । पार्श्वनाथ मन्दिर के दक्षिण शिखर पर उत्कीर्ण रामायण के एक अन्य कथा दृश्य का उल्लेख भी यहाँ प्रासंगिक है । अशोकवाटिका से सम्बन्धित इस दृश्य में क्लान्तमुख सीता को खड्गधारी असुर आकृतियों से वेष्ठित दिखाया गया है । सीता के समक्ष ही कपिमुख हनुमान की आकृति बनी है, जिन्हें सीता को राम की मुद्रिका देते हुए दर्शाया गया है । जैन ग्रन्थ पउ मचरिय ( विमलसूरिकृत ) एवं रविषेणकृत पद्मपुराण में राम-कथा का विस्तृत उल्लेख है । इन ग्रन्थों में अशोकवाटिका से सम्बन्धित दृश्य की भी चर्चा मिलती है (पउमचरिय ५३/११)। अर्धमण्डप और मण्डप पर वरण्ड के ऊपर द्विभुज राम की कई छोटी मूर्तियाँ भी है। इनमें राम के दोनों हाथों में एक लम्बा शर दिखाया गया है ।
मण्डप की उत्तरी भित्ति पर ही अग्नि की भी शक्तिसहित एक मूर्ति है । अग्नि श्मश्रुयुक्त हैं और उनके तीन हाथों में धनुकार्षण, दण्ड और शिखा है तथा एक हाथ आलिंगनमुद्रा में है। शक्ति की दाहिनी भुजा आलिंगनमुद्रा में है, जबकि बायें में चक्राकार पद्म है। काम और रति की भी दो युगल मूर्तियाँ हैं, जो क्रमशः पूर्व और उत्तर की भित्तियों पर हैं। पूर्वी भित्ति की मूर्ति में श्मश्रु और जटामुकुट से शोभित काम के दो हाथों में पंचशर एवं इषु-धनु है, जबकि
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