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आमुख
जैनधर्म भारतवर्ष के अतिप्राचीन और जीवन्त धर्मों में से एक है। ब्राह्मण धर्म और बौद्ध धर्म की भांति जैन धर्म में भी तीर्थों का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है । जैन तीर्थों के सम्बन्ध में श्वेताम्बर जैन परम्परा में आगमों, उनकी नियुक्तियों, चूर्णियों, भाष्यों और टीकाओं में तथा दिगम्बर परम्परा के विभिन्न ग्रंथों यथा--तिलोयपण्णत्ती, पुराण साहित्य एवं कथा ग्रंथों में बहुत कुछ सामग्री प्राप्त होती है । तीर्थों के सम्बन्ध में स्वतंत्र रचनाओं का प्रारम्भ ईसवी सन् की ११वीं शती से माना जाता है, इसके बाद से दोनों सम्प्रदायों में चैत्य परिपाटी, तीर्थयात्राविवरण, तीर्थमालाएँ, तीर्थस्तवन आदि अनेक रचनायें निर्मित हुई । जिनप्रभसूरिकृत कल्पप्रदीप अपरनाम विविधतीर्थकल्प इन सभी रचनाओं में सर्वश्रेष्ठ है। चूंकि जैन तीर्थों पर शोधपूर्ण दृष्टि से लेखनकार्य का प्रायः अभाव ही है । मुझे विश्वास है कि प्रस्तुत ग्रन्थ इस अभाव की पूर्ति में सहायक सिद्ध होगा।
प्रस्तुत ग्रन्थ मेरे शोध प्रबन्ध का संशोधित रूप है । यह नौ अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय विषयप्रवेश भूमिका स्वरूप है, जिसमें पूर्व के शोध कार्यों का सर्वेक्षण, स्रोत सामग्री और अध्ययन शैली आदि का विवेचन है। द्वितीय अध्याय में ग्रंथकार और ग्रंथ का विस्तृत परिचय दिया गया है । कल्पप्रदीप में तीर्थविषयक सामग्री के अध्ययन की आवश्यक पृष्ठभूमि के रूप में तृतीय अध्याय में ईसा पूर्व छठी शती से लेकर चौदहवीं शती तक जैन धर्म के प्रचार-प्रसार का 'एक संक्षिप्त सर्वेक्षण प्रस्तुत किया गया है । चतुर्थ अध्याय में तीर्थों का परम्परागत एवं प्रदेशानुसार विभाजन किया गया है। परम्परागत विभाजन में तीर्थों को कल्याणकक्षेत्र, सिद्धक्षेत्र और अतिशय क्षेत्र में बाँटा जाता रहा । प्रस्तुत ग्रंथ में प्रदेशानुसार विभाजनशैली को अपनाया गया है । इसके पांच विभाग किये गये हैं-उत्तरभारत, पूर्वभारत, मध्यभारत, पश्चिमभारत और दक्षिणभारत । आगे के शेष
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