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________________ २८८ - दक्षिण भारत के जैन तीर्थ शंख जिनालय को कर्णाटक प्रान्त के धारवाड़ जिलान्तर्गत लक्ष्मेश्वर तीर्थ में स्थित शंखवसति से समीकृत किया जा सकता है। लक्ष्मेश्वर दिगम्बर जैनों का एक प्रसिद्ध तीर्थ है। पूर्वकाल में इसे पुरिकरनगर, पुरिगेरे, पुलिगेरे आदि नामों से जाना जाता रहा।' मध्ययुगीन कुछ दिगम्बर जैन ग्रन्थकारों ने इस तीर्थ का उल्लेख किया है। मध्ययुग में यहाँ कई प्राचीन जिनालय विद्यमान थे, जिनके खंडहरों से अनेक अभिलेख प्राप्त हुए हैं, जो ८वीं से १६वीं शती ई०सन् के मध्य के हैं । इन लेखों में जैन आचार्यों और उनके गच्छों, शाखाओं आदि का तथा तत्कालीन शासकों एवं निर्माताओं का उल्लेख मिलता है। इन लेखों से पता चलता है कि यहाँ अनेक जिनालय विद्यमान थे, जिनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं-शंखवसति, तीर्थवसति, मुक्करवसति, राचमल्लवसति गंगकण्डरप्पजिनालय, गंगपरमादिचैत्यालय अथवा परमादि वसति, श्रीविजयवसति, मरुदेवीमंदिर, धवल जिनालय, गोग्गियवसति, अनिसेज्जयवसति और शान्तिनाथ जिनालय आदि। यह उल्लेखनीय है कि उक्त जिनालयों के नामों में अधिकांश तो गंग राजकुमारों के नाम के आधार पर हैं; जैसे गंग परमर्दी वेतुग 'द्वितीय' की उपाधि थी और राचमलल गंग नरेश था। इसी प्रकार गंग कन्दरप्प मारसिह की उपाधि थी। ऐसा प्रतीत होता है कि इनमें शंखवसति सबसे अधिक प्राचीन और महिम्न जिनालय था, ऐसी परिस्थिति में १४वीं शती में उत्तर भारत के एक ऐसे जैन ग्रन्थकार द्वारा, जिन्होंने निष्पक्ष भाव से जैन तीर्थों पर एक विशिष्ट ग्रन्थ लिखा हो, इस तीर्थ का उल्लेख करना स्वाभाविक है । उपरोक्त वसतियों (जिनालयों) में से शंखवसति तथा कुछ अन्य वसतियाँ ही आज विद्यमान हैं। १. देसाई, पी०बी० -जैनिज्म इन साउथ इण्डिया, पृ० ३८८ । २. जोहरापुरकर, विद्याधर-तीर्थवन्दनसंग्रह, पृ० १७१-७२ । ३. देसाई, पी०बी०-पूर्वोक्त, पृ० १३५-३७; १४४, २५१, ३८८ । ४. वही, पृ० ३८८ । ५. वही, पृ० ३८८ । ६. वही, पृ० ३८८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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